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३. अहिंसा और ध्यान
इसलिए कि वह सुख को पसन्द
प्रत्येक सामाजिक प्राणी अहिंसा को पसंद करता है । शांति को पसंद करता है। शांति के बिना सुख नहीं । वह करता है । अत: सुख के लिए शांति और शांति के लिए अहिंसा जरूरी है । हिंसा की जड़े इतनी मजबूत हैं कि उन्हें सहज ही काटा नहीं जा सकता। हिंसा की जड़े इतनी गहरी फैली हुई हैं कि बड़ा मुश्किल हो जाता है उन तक पहुंचना और गहराइयों तक जाना । उनको काटना सरल नहीं हैं, बड़ा कठिन है, किन्तु असंभव नहीं है, संभव है । उसको काटने के उपाय भी हैं। इनमें सबसे बड़ा उपाय है ध्यान । ध्यान के द्वारा इन जड़ों को आसानी से काटा जा सकता है |
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ध्यान और अहिंसा का क्या संबंध है ? इस पर चिंतन करने से पूर्व इस बात का चिंतन करें कि हिंसा के हेतु क्या हैं सिंचन देने वाले तत्व कौन हैं ? उन्हें जाने बिना जड़ का जा सकता । हिंसा के जो पोषक और सिंचक तत्त्व हैं उन्हें जानना भी जरूरी है ।
हिंसा की जड़ों को निर्मूलन नहीं किया
हिंसा के पोषक तत्त्व
हिंसा का एक बहुत बड़ा पोषक तत्त्व हैहै-तनाव | वही आदमी हिंसा करता है जो तनाव से ज्यादा ग्रस्त होता है । तनाव के बिना हिंसा संभव नहीं होती । शिथिलीकरण की दशा में कोई आदमी हिंसा नहीं कर सकता । पहले मांसपेशियों में तनाव होता है, मानसिक तनाव होता है, भावनात्मक तनाव होता है और आदमी हिंसा पर उतारु हो जाता है । मूल की दृष्टि से विचार करें तो सबसे बड़ा तनाव भावनात्मक तनाव है, आवेश जनित तनाव है ।
तनाव दो प्रकार का होता है आवेशजन्य और अवसादजन्य । क्रोध का तनाव और लोभ का तनाव आवेशजन्य तनाव है । अवसादजन्य तनाव हैनिराशा, निष्क्रियता, निठल्लापन । दोनों प्रकार के तनाव आदमी को हिंसा की ओर ले जाते हैं ।
बहुत बड़ी हिंसाएं क्रोध के कारण हुई हैं। क्रोध के कारण आदमी आग बबूला होकर दूसरे को मार डालता है, बहुत बड़ी हिंसाएं कर देता है । क्रोध में युद्ध तक की स्थिति आ जाती है । युद्ध एक भयानक घटना है। हिंसा का एक भयानक उदाहरण है । अहंकार के कारण भी बड़ी-बड़ी हिंसाएं हुई हैं ।
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