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हमारी जीवन-शैली और अहिंसा उनमें कोई संदेह नहीं। और वे सचाइयां हमारे सामने प्रगट होती जाती हैं। हम अपने भीतर को देखने का सावधान प्रयोग करें, सचेष्ट प्रयोग करें, गहराई में जाकर अपने आपको देखें, जीवन में एक संतुलन बनाएं, दोनों पक्षों को बराबर बनाएं । व्यावहारिक पक्ष के बिना हमारा काम नहीं चलता। उसे चलने दें, किंतु उसके साथ-साथ पारमार्थिक पक्ष को भी उजागर करें। जिस दिन व्यावहारिक अहिंसा और पारमार्थिक अहिंसा-इन दोनों का संतुलन बनेगा उस दिन 'मनुष्य में हिंसा का जन्म कैसे हुआ' इसका उत्तर दिया जा सकेगा।
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