Book Title: Ahimsa ke Achut Pahlu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ हमारी जीवन-शैली और अहिंसा अर्थ है अहिंसा के मूल आधार को देखना, मूल आधार को खोजना । जब तक हम अपने आपको नहीं देखेंगे तब तक अहिंसा के मूल आधार को नहीं खोज पाएंगे। हमारी अहिंसा की खोज अधुरी रहेगी और वह कभी पूरी नहीं होगी। हमें सीखना है अपने आपको देखना । आज एक कठिनाई है कि ध्यान को हमने ठीक अर्थ में शायद समझा नहीं है। अगर ठीक अर्थ में समझते तो पढ़ना जितना अनिवार्य मानते हैं, ध्यान को उससे ज्यादा अनिवार्य मानते। आज एक पिता के सामने लड़के को पढ़ाने की अनिवार्यता है, अपनी लड़की को पढ़ाने की अनिवार्यता है। वे समझते हैं कि लड़का नहीं पढ़ेगा तो पैसा नहीं कमा पाएगा। जीविका ठीक नहीं चलेगी। लड़की नहीं पढ़ती है तो अच्छा वर या अच्छा घर नहीं मिलेगा। पढ़ाई की अनिवार्यता है । ध्यान की कोई अनिवार्यता नहीं है। व्यवहार की भूमिका पर जीने वाला आदमी हर बात का मूल्यांकन व्यवहार के स्तर पर करता है। परमार्थ की उसे कोई चिन्ता नहीं है। परमार्थ उसके लिए अनिवार्य नहीं बनता। कितना अच्छा होता कि हमारी दोनों आंखें बराबर खुली होतीं। हमारे मस्तिष्क के दोनों पटल बराबर सक्रिय होते । हमारे दोनों हाथ बराबर काम करते । अपना पता जाने कहा जाता है---एक बार धर्मराज के दरबार में तीन आदमी लाए गए। एक व्यापारी था, एक साहूकार था और एक चोर था। तीनों पहुंचे। धर्मराज ने उन तीनों का लेखा-जोखा किया और कहा-हो सकता है कि मैं तुम तीनों को फिर से मनुष्य लोक में भेज दूं। पर जाने से पहले तुम अपनी अन्तिम इच्छा बता दो-तुम क्या चाहते हो ? व्यापारी बोला, भगवन् ! मैं और कुछ नहीं चाहता, बस, यही चाहता हूं कि मेरे गोदाम माल से भरे रहें। सब चीजों के भाव बढ़े-चढ़े रहें, बस और कुछ नहीं। साहूकार से पूछा कि तुम क्या चाहते हो ? उसने कहा- मैं और कुछ नहीं चाहता, बस, मेरी तिजोरियां रुपयों से भरी रहे । चोर से पूछा-तुम क्या चाहते हो ? उसने कहा-मैं कुछ नहीं चाहता, ये दोनों बड़े लोभी और स्वार्थी हैं। मैं तो बस इतना चाहता हूं कि इन दोनों का पता आप मुझे बता दें। चोर पता चाहता है और कुछ नहीं चाहता। पता मिल जाए तो फिर और कुछ भी आवश्यक नहीं है। हमें भी अपना पता जान लेना है । मूल को पकड़ें पारमार्थिक अहिंसा की खोज वैज्ञानिक उपकरणों के आधार पर नहीं हो सकती, इतिहास के आधार पर भी नहीं हो सकती, आनुवंशिकी विद्या के आधार पर भी शायद नहीं हो सकती। वह हो सकती है अपनी अन्तरात्मा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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