Book Title: Agam 44 Chulika 01 Nandi Sutra
Author(s): Devvachak, Jindasgani Mahattar, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 11
________________ ग्रन्थसमर्पण जिनका मन-वचन-काययोग श्रेष्ठ श्रुतसागरकी तरंगोंमें तैरता था, जो श्रेष्ठ जिनागमके प्रकाशनमें अप्रमत्तयोगसे प्रवृत्त थे, योगअयोग के विवेक में कुशल थे, गाम्भीर्यगुणकी गरिमासे अन्वित थे, 'आगमोद्धारक 'की श्रेष्ठ पदवोसे विभूषित सन्त थे, और दुःषमकालमें जिन्होंने अपने आपमें 'महानाद' शब्दको सत्य सिद्ध किया था ऐसे साम्प्रत कालमें दिवंगत आचार्यश्रेष्ठ श्रीसागरानन्दसूरिजीके पवित्र करकमल रूप कोषमें यह ग्रन्थ विनयपूर्वक समर्पित करता हूँ। पुण्यविजय Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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