Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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(१५)
अप्पा चैव दमेयव्यो अप्पा हु खलु दुद्दमों । अप्पा दंतो सुहो हीइ असि लोए परत्य य (१५) वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य । माई परेहि दम्पतो बंधणेहि वहेहि य (१७) पडिणीयं च बुद्धाणं दाया अदुव कम्पुणा । आवी या जइबा रहस्से नेव कुजा कयाइवि (१८) न पक्खओ न पुरओ नेव किखाण पिओ । न जुंजे ऊरुणा ऊरु सयणे नो पडिस्सुणे (१९) नेव पल्हत्थियं कुञ्जा पक्खपिंडं च संजए । पाए पसारिए वावि न चिठ्ठे गुरुणंतिए (२०) आयरिएहिं वाहितो सिणीओ न कयाइवि । पसायपेही नियोगठ्ठी उबचिट्ठे गुरुं सया
(२१) आलवंते लवंते वा न निसीएज कयाइवि । चऊणमासणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे (२२) आसणगओ न पुच्छेजा नेव सेज्जागओ कपाइवी । आगमुक्कुरुओ संतो पुछिया पंजलीउडो (२३) एवं विणयजुत्तस्स सुत्तं अत्यं च तदुभयं । पुच्छमाणस्स सीसस्स वागरिा जहासुपं (२४) मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणि वए । भासादीसं परिहरे मायं च वज्रए सया (२५) न लवेझ पुट्ठो सावज्रं न निरडुं न मम्मयं । अप्पणठ्ठा परट्ठा वा उपयस्संतरेण वा (२६) समरेसु अगारेसु संधीसु य महापहे । एगो एगथिए सद्धि नेव चिद्वे न संलवे (२७) जं मे बुद्धाणुसासंति सीएण फरुसेण वा ।
मम लाभो ति पेहाए पयओ तं पडिस्सुणे (२८) अणुसासणमोवायं दुक्कडरसय चोयणं । हियं तं मन्नए पण्णो वेस होइ असाहुगो (२९) हियं विगयभया बुद्धा फरुसंपि अनुसासणं । वेसं तं होइ मूढाणं खंतिसोहिकरं पयं (३०) आसणे उवचिट्ठेखा अणुच्चे अकुए थिरे । अप्पुठ्ठाई निरुठ्ठाई निसीएजऽ प्पकुक्कुए (११) कालेज निक्खमे भिक्खू कालेण य पडिक्कमे । अकालं च विवजित्ता काले कालं समायरे (३२) परिवाडीए न चिठ्ठेजा भिक्खू दत्तेसणं चरे ।
परूियेण एसित्ता मियं कालेज भक्तए
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उत्तरायणापि -१/१५
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