Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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अपर्ण - २१
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(७८१) तं पासिऊण संवेगं समुद्दपालो इणमवी अहोऽमाण कम्माणं निजाणं पावगं इमं (७८२) संबुद्धो सो तर्हि भगवं परमसंवेगमागओ आपुच्छम्मापियरो पव्वए अणगारियं (७८२ ) जहित्तु सग्गंथमहाकिलेसं महंतमोई कसिणं भयावहं परियायधम्मं चभिरोयएजा वयाणि सीलाणि परीसहे य (७८४) अहिंस सचं च अतेणगं च तत्तो य बंधं अपरिहं च
१७६९/- 11
पडिवजिया पंच महव्ययाणि चरिज धम्मं जिणदेसियं विऊ ॥ ७७०॥ 12 (७८५) सब्वेहिं पूएहिं दयाणुकंपी खंतीक्खमे संजयबंभयारी सावनजोगं परिवजयंतो चरिज भिक्खू सुसमाहिइंदिए (७८३) कालेण कालं विहरेज रहे बलाबलं जाणिय अप्पणीय सीहो व सद्देण न संतसेजा ययजोग सुखा न असब्ममाहु (७८७) उवेहमाणो उ परिव्यएचा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा
॥७६७॥
बाइसइमं अायणं - रहनेमि
(७९७) सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिष्टिए वसुदेवु ति नाणं राय लक्खणसंजुए
||७६८|| -10
||७७२-14
न सव्व सव्वत्यऽभिरोयएञ्जा न यावि पूयं गरहं च संजए ॥ ७७३ ॥ -16 (७८८) अगच्छंदामिए माणवेहिं जे भावओ संपरेइ भिक्खू
भयमेरवा तत्य उइंति भीमा दिव्या मणुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥ ७७४ ॥ - 16 (७८९) परीसहा दुव्विसहा अगेगे सीयंति जत्था बहुकायरा नरा से तत्थ पत्ते न यहि भिक्खू संगामसीसे इव नागराय (७९०) सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसति देहं अक्कुक्कुओं तत्यऽहियासएजा रपाई खेवेज पुरे कयाई (७९१) पहाय रागं च तद दोसं मोहं च भिक्खू सततं वियक्खणो मेरु व्य वाण अकम्पमाणो परीसहे आयगुते सहेजा (७९२) अणुत्रए नायणए महेसी न यादि पूयं गरहं च संजए सउजुमायं पडिव संजय निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ( ७९३) अरइरइसहे पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवे परमट्ठपएहिं चिट्ठई छित्रसोए अममे अकिंचणे (७९४) विवित्तलयणाइ भए ताई निरोवलेवाइ असंथडाई इसीहि चिण्णाई महायसेहिं कारण फासेज परीसहाई (७९५) सभाणनाणीवगए महेसी अनुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं अनुत्तरे नामघरे जसंसी ओभासई सूरिए वंतलिक्खे (७१६) दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वोओ विप्यमुक्के
तरितासमुद्द य महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए- त्तिबेमि |||७८२ ॥ - 24 •. एन विताइर्म अन्प्रयणं समतं •
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||99411-17
७७६॥-18
१७७७॥-10
||99211-20
[1998||-21
1192011-22
1192911-23
॥७८३ ॥ -1
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