Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरायणापि-२९/११ चरितपाये विसोहिता अहक्खायचरितं विसोहेइ अहक्खायपरितं यिसोहेत्ता घत्तारि केयलिकम्मसे खवेइ तओ पच्छा सिन्झाइबुझाइ मुखइ परिनिव्यायइ सय दुक्खाणमंतं करेइ ।७२१-58 (११७२) नाणसंपन्नयाए थे भंते जीवे किं जणयह ना० जीये सव्वभावाहिग जणयह नाणसंपत्रे णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ नाणविणयतवचरित्तजोगे संपाउणइ ससमयपरसमयविसारए य असंधायणिजे भवइ ७३!-69 (110) जहा सूई ससुत्ता पडिया विनविणस्सइ तहाजीवे सत्तेसंसारे न विणस्सइ ॥१०९७1-1 (hur) सणसंपन्नयाए णं भंते जीवे किं जणयइ सणसंपन्नयाए णं भवमिछत्तछेयणं करेइ परं न विज्झायइ परं अविझाएमाणे अनुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्म भावोमाणे विहरइ ७४1-60 (१९७५) चरितसंपत्रयाए णं मंते जीवे किंजणपइ चरित्त० सेलेसीमावं जणयइ सेलेसि पडियो य अणगारे चत्तारि केवलिकम्मसे खवेइ तओ पच्छा सिन्झइ बुग्नइ मुच्चइ परिनिव्यायइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ ७५181 (११७६) सोइंदियनिग्गहेणं मंते जीवे किं जणवइ सो० मणुत्रा मणुत्रेसु सद्देसु रागदोसनिगहंजणयइतप्पाइयं कम्मनबंधइ पव्वबद्धं च निझोड ७६|82 (११७७) चक्विंदियनिग्गहेणं मंते जीवे किं जणयइ व० मणुनामणुनेसु रुवेसु रागदोसनिग्गहंजणयइ तप्पाइयं कामं नबंधइ पुब्यबद्धं च निनोइ |७७/-63 (१९७८) धाणिदिय निग्गहेणं मंते जीये किं जणयइ घा० मणुत्राममुत्रेसु गंधेसु रागदोसनिगह जणयइतप्पञ्चइयं कम्मनबंधा पुव्यबद्धं च निझरेइ १७८1-84 (११७९) जिभिदियनिग्गहेणं मंते जीवे किं जणयइ जि० मणुनामणुनेसु रसेसु रागदोसनिग्गहं जणयइतप्पच्चइयं कम्मनबंधइ पुवबद्धं च निझरेइ ७९।-06 (१७८०) फासिदियनिगाडेणं मंते जीवे किं जणयइ फा० मणुनामणुत्रेसु फासेसु रागदोसनिगहंजणयइ तप्पाइयं कामं नबंधइ पुष्यबद्धधनिझरेइ।८०1-68 (१५८१) कोह विजएणं मंते जीवे किंजणयह को० खंति जणपइ कोहवेयणिग्न कम्मन बंधइ पुब्बबद्धं च निझरेइ।८१-87 (११८२) पाणविजएणं मंते जीवे किं मणयह माणविजएणं महवं जणयइ माणवेयणिशं कम्मनबंधइ पव्वषद्धं च निजरेइ।८२-88 (१८३) मायायिजएणं मंते जीये किं जणयइ मायायिजएणं अञ्जवं जणयइ मायावेयणिशं कम्मनं बंधइ पुब्बबद्धं च निजरेइ ।८३1-80 . (11८४) लोभविजएणं भंते जीये किं जणयइ लोपविजएणं संतोसं जमयइ लोपवेयणिजं कम्मं नबंधई पुव्वषद्धं च निझरेइ ।।४1-70 (१९८५) पिज्जदोसमिच्छादसणविजएणं भंते जीवे किं जणयइ पि० नाणदंसणचरिताराहणयाए अब्बुढेइ अट्ठविहस्स कम्मस्स कम्मगण्ठिविमोयणयाए तपढमयाए जहाणुपुबीए अट्टवीसविहं मोहणिझं कामं उग्घाएइ पंचविहं नाणावरणिचं नवविहं दंतणावरणिजं पंचयिहं अंतराइयं एए तिनि वि कम्मसे जुगवं खदेइ तओ पच्छा अणुत्तरं अनंत कसिणंपडिपुण्णं निरावरणं वितिमिरं विसुद्धं लोगालोगप्पभावं केयलरनाणं दंसणं समुप्पाडेइ जाव सजोगी मवइ For Private And Personal Use Only

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