Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ अायणं-१२ (१२५२) जहाय अंडप्पमवा बलागाअंडं बलागप्पपवं जहाय एमेव मोहाययणं खुतण्हा मोहंचतणहायपणं ययंति ॥११६११-8 (१२५३) रागो य दोसो विय कम्मबीर्य कम्मंच मोहप्पमवं ययंति यमंघजाइमरणस्स मूलंदुक्खंच जाईमरणं वयंति ॥११६२||-7 (१२५४) दुक्खं हयं जस्स न होइ मोहो मोहो हओजस्सन होइ तण्हा तण्हा हया जस्स न होइ लोहो लोहो हओ जस्स न किंचणाइ ||११६३||-8 (१२५५) रागंच दोसं च तहेव मोहं उद्धत्तुकामेण समूलजालं जेजे उवाया पडिवञ्जियव्वा ते कितइस्सामि अहाणुपुचि ॥११६४|-2 (१२५६) रसा पगाम न निसेवियव्या पायं रसा दित्तिकारा नराणं दितंचकामा समभिवति दुमंजहा साउफलं वपस्त्री ॥११६५||-10 (१२५७) जहा दवग्गी पउरिंधणे वणे समारुओ नीवसमं उवेइ एविदियानी विपगापपोइणो न बंभयारिस्स हियाय कस्सई ।।११६६॥-11 (१२५८) विवित्तसेञासणजंतियाणं ओमासणाणं दमिइंदियाणं नरागसत्तू धरिसेइ चित्तं पराइओ वाहिरियोसहेहिं ॥११६७॥-12 (१२५१) जहाबिरालावसहस्स मसेन मूसगाणं वसही पसत्या । एमेव इत्यानिलयस्समझेनबंभयारिस्स खमो निवासो ॥११६८8-23 (१२६०) न रूयलावण्णविलासहासं नजंपियं इंगियपेहियं वा इत्यीण चित्तंसि निदेसइत्ता दटुं ववस्से समणे तवस्सी ॥१६९।1-14 (१२६१) अदंसणं चेव अपत्यणं च अचिंतणं चैवअकित्तणंघ इत्थीजणस्सारियझाणजुगं हियं सया बंभयवए रयाणं ॥११७९||-15 (१२६२) कामंतुदेवीहिं विभूसियाहिं न चाइया रोभइउंतिगुत्ता तहावि एगंतहियं ति नद्या विवित्तवासो मुणिणं पसत्यो ॥११७१1-16 (१२६३) मोक्खाभिकंखिस्स उ माणवस्स संसारभीरुस्स ठियस्स धम्मे नेयारिसंदुत्तरमत्यि लोए जहिथिओबालमणोहराओ ॥११७२-17 (१२६४) एए य संगे समइक्कमित्ता सुहुत्तरा चेव भवंति सेसा । जहा महासागरमुत्तरिता नई मवे अवि गंगासमाणा ॥११७३-18 (१२६५) कामाणुगिद्धिप्पभवं खुदुक्खं सबस्स लोगस सदेवगस्स जे काइयं माणसिपं व किंचितसं तगं गच्छद वीयरागो ॥११७४1-19 (१२६९) जहा य किंपागफलामणोरमा रसेण वपणेण य भुजमाणा तेखुहुए जीविय पञ्चमाणाएओयमा कामगुणा विवाये ॥११७५/-20 (१२६७) जे इंदियाणं विसया मणुत्रा न तेसु भाव निसिरे कयाइ नयामणुनेसु मणं पिकुजा समाहिकामेसमणे तबस्सी ॥११७६-21 (१२६८) चक्षुस्स परूवं गहणं वयंतितं रागहेउं तु मणुनमाई तंदोसहेउं अमणुनमाहुं समोय जो तेसुस वीयरागो ||११७७11-22 (१२९५) स्वस्स चक्टुं गहणं वयंतिचक्खुस्सरूवं गहणं वयंति __ रागस्स हेउं समगुत्रमाहुं दोसस्स हेउं अमणुप्रमाहुं ॥११७८||-29 For Private And Personal Use Only

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