Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 103
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रचनामा1ि५४ ॥१४६३|-80 १४६४1-01 ॥१४६५||-02 १४६६1-03 ||१६||-84 ॥१४६८||-85 ॥१४६९1-88 ॥१७0|1-97 ||१७||-88 (१५५४) अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुत्तं जहन्नयं विजदम्मि सए काए आऊजीवाण अंतरं (१५५५) एएसिं वण्णो चेव गंधओरसफासओ संगणदेसओ वावि विहाणाईसहस्सओ (१५५६) दुविहा वणस्सईजीवा सुहुमा बायरा तहा पञ्जत्तमपछत्ता एवमेए दुहा पुणो (१५५७) बायरा जे उ पञ्जत्ता दुविहा ते विपाहिया साहारणसरीराय पतेगाय तहेवय (१५५८) फ्तेगसरीराओऽणेगहा ते पकित्तिया रुक्खा गुच्छाय गुम्पाय लया वाशी तणा तहा (१५५१) वलय पव्यगाकुहुणाजलरहा ओसही तहा हरियकायाबोधव्वा पत्तेगाइ वियाहिया (१५६०) सहारणसरीराओऽणेगहा पकितिया आलुए मलए चेव सिंगबरे तहेयय (१९१७) हरिली सिरिली सस्सिरिली जावई के यकंदली पलंदू लसणकंदेय कंदली य कुहुवए (१५६२) लोहिणी हूय थी हूय कुहगायतहेवय कण्हे य यज्ञकंदेय कंदे सूरणए तहा (१५५३) अस्सकण्णी य बोधव्या सीहकरणी तहेवय मुसुण्डीय हलिहायणेगहा एवमायओ (१९६४) एगविहमणाणता सुहुमा तत्य वियाहिया सुहमा सव्यलोगम्मिलोगदेसे य बायरा (१५1५) संतइंपप्पणाईया अपञ्जवसियाविय ठिई पञ्च साईया सपञ्जवसियाविय (91) दस वेव सहस्साई वासाणककोसिया भवे वणस्सईण आऊंतु अंतोमुहत्तं जहनिया (१९१७) अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहत्तं जात्रयं कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुंचओ (१९६८) असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुर्त जहन्नयं विजदम्मि सएकाए पणगजीवाण अंतरं (१५४९) एएसि वण्णओचेव गंधओ रसफासओ संठाणदेसओवावि विहाणाइंसहस्ससो (१५७०) इभेए यावरा तिविहा समासेण वियाशिया इत्तो उतसे तिविहे युच्छामिअणुपुल्चसी (१५७१) तेऊ वाऊ यबोधब्बा उरालाय तसा तहा इथेए तसा तिविहा तेसिं भेए सुणेह मे ||१४७२॥-80 Ir७३||-100 ७४11-101 19r७५|1-102 ॥१४७६||-10 ||१४७७11-104 ७८||-105 119/७२||-108 ॥१४८०11-107 For Private And Personal Use Only

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