Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 97
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरायपाकि-Ams ||१३५६1-4 ||१३५७1-5 1१३५८1-8 ॥१३५९||-7 ॥१३६०॥8 ॥१३६।।-9 11१३६२॥-10 ॥१३६३||-11 ।।१३६||-12 (mm) मणोहरं चित्तधर मालधूवेण वासिय सकवाडं पंडुरुल्लोयं मणसावि न पत्यए (orre) इंदियाणि उ भिक्खुस तारिसम्मि उवस्सए दुक्कराइं निवारेउं कामरागविषहणे (en) सुसाणे सुत्रगारे वा रुक्खमूले व एक्कओ परिक्कै परकडे वा यासं तत्थाभिरोयए (१४५०) फासुयम्मि अणावाहे इत्यीहि अणभिहुए तत्य संकप्पए वासं भिक्खू परमसंजए (१४५१) न सयं गिहाई कुव्विानेव अनहिं कारए गिहकम्पसमारंभे भूयाणं दिस्सए वहो (१४५२) तसाणंथावराणं च सुहुमाणं बादराणय तम्हा गिहसमारंभ संजओपरिवाए (१४५३) तहेव मत्तपाणेसुपपणे पावणेसुय पाणभूयदयहाए न पयेन पयावए (१५४) जलधत्रनिस्सिया जीवापुढवीकट्टनिस्सिया हम्मति भतपाणेसुतम्हा भिक्खूनपयायए (In५) विसप्पे सव्यओधारे बहुपाणिविणासणे नयि जोइसमे सत्ये तम्हा जोई नदीवए (67५५) हिरणं जायस्वंच मणसा विन पत्थए समलेटुकंवणे मिक्खू विरए कयविक्कए (१४५७) किणंतो कइओ होइ विक्किणंतो प याणिओ कयविक्कयम्मि वहतोभिक्खून भवइ तारिसो (५८) मिक्खियव्वं न केयव्वं भिक्षुणा मिक्खुवत्तिणा कयविक्कओ महादोसो भिखवत्ती सुहावड़ा (५१) समुयाणं उछमेसिमाजहासुत्तमणिदिर्य लामालामम्मि संतडे पिण्डवायचरे मुणी (arto) अलोले नरसे गिद्धे जिब्मादते अमुच्छिए नरसद्वाए मुंजिञ्जाजवणडाए महामुणी (Aven) अधणं रयणंचेव वंदणं पूयणं तहा इसीसकारसम्माणमणसावि न पत्यए (१४६२) सुक्करमाणं शियाएजा अणियाणे अकिंधणे योसहकाए विहरेज जाव कालस्स पाओ (४) निहिऊणं आहारं कालधम्मे उवहिए जहिऊण माणुसंबोंदि पहू दुक्खा विमुचई (१४६४) निमम्मो निरहंकारे वीयरागोअणासयो संपत्तो केवलं नाणं साप्तयं परिणिव्युए ति बेमि॥ पणतीसा अज्मपसमतं. ||१३६५||-13 ॥१३६६||-14 ।।१३६७|-16 ।।१३६८11-18 ॥१३६९||-17 ॥१३७०||-18 ॥१३७१||-19 ॥१३७२।।-20 ||१३७३||-21 For Private And Personal Use Only

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