Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 83
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७४ www.kobatirth.org (१२००) जा सा अणसणा मरणे दुविहा सा वियाहिया सवियारमदियारा कायचिट्टं पई भवे (१२०१) अहवा सपरिकम्मा अपरिकम्माय आहिया नीहारिमनीहारी आहारच्छेओ दोसु वि (१२०२) ओमोयरणं पंचा समासणे वियाहियं दव्यो खेत्तकालेणं भावेण पज्जवेहिं य (१२०३ ) जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे जत्रेणेगसित्याई एवं दव्वेण ऊ भये (१२०४) गामे नगरे तह रायहाणिनिगमे य आगरे पल्ली खेडे कब्बडदोणमुहपट्टणमडंबरांबाहे (१२०५) आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य थलिसोणाखंधारे सत्ये संवट्टकोट्टे य (१२०१) वाडेसु व रत्थासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं कम्पइ उ एवपाई एवं खेत्तेण ऊ भवे (१२०७) पेडा य अद्धपेडा गोमुत्तियपगंगवीहिया चेव संबुक्कावट्टायांतुंपञ्चागया छट्ठा (१२०८) दिवसस्स पोरुसीणं चउण्हंपि उ जात्तिओ भये कालो एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेपव्व (१२०१) अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसंतो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चऊभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे (१२१०) इत्थी वा पुरिसो या अलंकिओ वा नलंकिओ पावि अनयरचयत्थी वा अनयरेणं व यत्येणं (१२११) अत्रेण विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमुयंते उ एवं चरमाणो खलु भावामाणं मुणेयव्वं (१२१२) दव्वे खेत्ते काले भावम्मिय आहिया उ से भावा एएहिं ओमचरओ पञ्जवचरओ भवे भिक्खू (१२१३) अट्ठविहगोयरग्गं तु तहा सत्तेव एसणा अभिग्गहाय जे अत्रे भिक्खायरियमाहिया (१२१४) खीरदहिसप्पिमाई पणीयं पाणयोयणं परिवाणं रसाणं तु भणियं रसविवजणं (१२१५) ठाणा वीरासणाईया जीवस्स उ सुहावहा उगा जहा धरिति कायकिलेसं तमाहियं (१२१६) एगंतमणावाए इत्थीपसुविवज्जिए सयणासणसेवणया विवित्तसयणासणं (१२१७) एसो बाहिरगंतवो समासेणं वियाहिओ पितरं तवं एत्तो वृच्छामि अणुपुव्वसो For Private And Personal Use Only उत्तरायणाणि - २०/१२०० ||११०९ || 12 ||9990||-13 11999911-14 ।।१११२||-15 11999311-16 11999811-17 1199941-18 ||१११६|| १० 11999911-20 ||१११८|--21 ||१११९॥-22 11992011-23 ।।११२१॥-24 #19933 1-25 ॥११२३|| -26 ।।११२४।।-27 |||३१२५|| 28 ||११२६॥-29

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