Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra मणापर्ण-२२ www.kobatirth.org (८१५) सो कुंडलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए (८१७) मणपरिणामे य कए देवा य जोइयं समोइण्णा सव्वइटीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे (८१८) देवमणुस्सपरिवुडो सियारयणं तओ समारुढो निक्खमिय बारगाओ रेवययमि डिओ भगवं (८१९) उज्जाणं संपत्ती जोइण्णो उत्तमाउ सीयाओ । साहसी परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहि (८२० ) अह से सुगंधगंधीए तुरियं मिउयकुंचिए सयमेव लुंचई केसे पंचमुडीहिं समाहिओ (८२१) वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं इच्छियमणोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा (८२२) नाणेणं दंसणेणं च चरितेण तहेव य खंतीए मुत्तीएवढमाणो प्रवाहि य (८२३) एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जणा अरिनेमिं वंदित्ता अभिगया बारगापुरिं (८२४) सोऊण रायकत्रा पव्वज्रं सा जिणस्स उ नीहासाय निरानंदा सोगेण उ समुत्थिया (८२५) राईमई विर्चितेइ धिरत्थु मम जीर्वियं जासं तेण परिचत्ता सेयं पव्यइउं मम (८२६ ) अह सा ममरसत्रिमे कुछफणगपसाहिए सयमेव लुंबई केसे घिइमंता ववस्सिया (८२७) वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइन्दियं संसारसागरं घोरं तर कत्रे लहुं लहुं (८२८) सा पव्वइया संती पव्वावेसी तहिं बहु Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सयणं परियणं चैव सीलवंता बहुस्सुया (८२९) गिरिं रेवतयं जंती वासेणुल्ला उ अंतरा वासंते अंधयारंमि अंतो लयणस्स साठिया (८३०) चीवराइं विसारंती जहा जाय ति पासिया रहनेमी मग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि (८३१) मीयाय सा तहिं दठ्ठे एगंते संजयं तयं बाहाहिं काउ संगोफं देवमाणी निसीयई ( ८३२) अग सो वि रायपुत्ती समुद्दविजयंगओ भीयं पवेवियं दद्धुं इमं यक्कं उदाहरे (८३३) रहनेमी अहं भद्दे सुरुवे चारुभासिणी माहिं सुतणुन से पीला भविस्सई For Private And Personal Use Only ८०२॥ -20 ||८०३॥-21 licov|| -22 ||20411-23 १८०६१ 24 ॥८०७|| 25 १८०८11-26 ||८०९|| 27 ||29011-28 11299|1-20 ८१२॥ 30 ||१३|| -31 ||८१४|| 92 1129411-33 ||८१६]-34 ||८१७|| -35 1129211 -36 ||८१९ ॥ -37 ་་

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