Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandin
५८
उत्तरमपणाणि-२४/१४०
॥१२५||
॥९२६|| -8
।।९२७।। -7
॥९२८|| -8
९२९॥
|९३०11 -10
॥९३१॥-11
९३२|| -12
॥९३३॥ -13
(१४०) तत्य आलेखणं नाणंदसण घरणंतहा
काले प दिवसे वुत्ते मग्गे उपहवझिए (४१) दव्यओ खेत्तो चेव कालओ भावओतहा
जयणा घउव्यिहा युत्तातं मे कित्तयओसुण (१४२) दव्यओ चखुसा पेहे जुगमितं चखेतओ
कालओजावरीएशा उवउत्तेयभावओ (९४३) इंदियत्ये विवनितासम्झायं चैव पंचहा
तमुत्ती तप्पुरकारे उवउत्तेरियंरिए (९) कोई माणेय मायाए लोभेय उवउत्तया
हासे भए मोहरिए विकहासु तहेदव (९४५) एयाईअह ठाणाई परिवञ्जित्तु संजए
असावजं मियंकाले भासंभासेञ्ज पनवं (९४६) गवेसणाए गहणे य परिमोगेसणायजा
आहारोपहिसेञ्जाए एए तित्रि विसोहए (९४७) उग्गमुप्पायणं पढमे बीए सोहेज एसणं
परिभोयम्मि चउक्कं विसोहेअजयंजई (९४८) ओहोवहोवगहियं भंडगंदुविहं मुणी
गिण्हंतो निखिवंती या पउंजेज इमं विहि (९४५) चक्खुसा पडिलेहिता पमझेश जयंजई
आइएनिखिवेशाचा दुहओ विसमिए सया (१५०) उच्चारंपासवणं खेलं सिंघाणजल्लियं
आहारं उवहिं देहं अन्ने वावितहाविहं (१५१) अणावायमसंलोए अणावाए घेव होइ संलोए
आवायमसंलोए आवाए पेव संलोए (९५३) अणावायमेसंलोए परस्सणुपयाइए
समे अझुसिरे यावि अधिरकालकयम्मिय (१५३) विच्छिण्णे दूरसीगाढे नासो बिलवनिए
तसपाणबीयरहिए उचाराईणियोसिरे (१५४) एयाओपंच समिईओसमासेण वियाहिया
एत्तो य तओ गुत्तीओयोच्छामि अणुपुष्यसो (९५५) सद्या तहेव मोसाय सखामोसा तहेवय
घउत्थी असम्घमोसाय मणगुत्तिओघउव्यिहा (१५६) संरंपसमारंभे आरंभेय तहेवय
मणं पवत्तमाणंतु नियतेज जयंजई (९५७) सच्चा तहेव पोप्ता यसमामोसा तहेवय
घउत्यी असचमोसा य वइगुत्ती घडविहा
॥१३४|| -14
॥९३५|| -18
९३६|| -16
१३७|| -17
९३८॥ -18
||१३९|| -10
।९४०॥ -20
॥१४१|| -21
॥९४२1-22
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114