Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 74
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अयणं - २७ www.kobatirth.org (१०९३) एगो पडइ पासेणं निवेसइ निवाई उक्कुइ उप्पिडइ सढे बालवी बए (१०६४) माई मुखेण पडइ कुद्धे गच्छइ पडिप्यलं मलक्खेण चिट्ठई वेगेण य पहावई (१०६५) छिन्नाले छिंदई सेलिं दुद्दतो भंजए जुगं सेविय सुस्सुयाइत्ता उजहित्ता पलायए (१०६६) खलुंका जारिसा जोखा दुस्सीसा वि हु तारिसा जोइया धम्मजाणंभिती घिइदुब्बला (१०६७) इष्टीगारविए एगे एगेऽत्य रसगारवे सायागार विए एगे एगे सुचिरकोहणे (१०६८) भिक्खालसिए एगे एहे ओमाणभीरुए एवं च अणुसासम्मी हेऊहिं कारणेहि य (१०६९) सो वि अंतरभासिल्लो दोसमेव पकुब्वई थद्धे आयरियाणं तु वयणं पडिकूलेइऽ भिक्खणं (१०७०) नसा ममं वियाणाइ न वि सो मज्झ दाहिई निग्या होहिई मन्ने साहू अन्नोत्थ वजउ (१०७१) पेसिया पलिउंचति ते परियंति समंतओ रायवेट्ठि च मन्नंता करेति मिउड मुहे (१०७२ ) वाइया संगहिया चेद भत्ताणेण पोसिया जाया जा हंसा पक्कमति दिसो दिर्सि (१०७३) अह सारही विचिंतेइ खलुंकेहिं समागओ किं मज्झ दुदुसीसेहिं अप्पा मे अवसीयई (१०७४) जारिसा मम सीसा उ तारिसा गलिगद्दहा गलिगद्द जहित्ताणं दढं पगिण्हई तवं (१०७५) मिउमद्दवसंपन्नो गंभीरो सुसमाहिओ 43 5 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०७६) मोक्खमग्गगई तचं सुणेह जिणभासियं चउकारणसंजुत्तं नाणदंसणलक्खणं (१०७७) नाणं च दंसणं चैव चरितं च तवो तहा एस मग्गो त्ति पत्रत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं (१०७८) नाणं च दंसणं चैव चरितं च तवो तहा एयंमग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं (१०७९) तत्य पंचविहं नाणं सुयं आभिनिबोलियं ओहिनाणं तु तइयं मणनाणं च केवलं विहरइ महिं महप्पा सीलसूण अप्पणा - ति बेमि ।। • सत्तावीसइयं अन्यणं समतं • अट्ठावीसइमं अज्झयणं- मोक्खमग्गगई For Private And Personal Use Only ||१०४८|| ||१०४९ ||6 11904011-7 ॥१०५१॥-8 ||१०५२|| ||१०५३॥-10 |||१०५४||-11 ॥१०५५॥-12 ॥१०५६।। 13 ॥१०५७।1-14 11904211-15 ||१०५९||-18 119060|1-17 ||१०६१।।-1 ।।१०६२।1-2 ||१०६३।३ ||१०६४ || -4 ६५

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