Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरायणाणि-२८/१०८० ||१०६५/6 ||१०६६/ ||१०६७17 ॥१०६८18 ||१०६९||-9 ॥१०७०1-10 11१०७१111 ||१०७२-12 119०७३-13 (१०८०) एयं पंचविहं नाणं दव्याण य गुणाणय पजयाणं च सव्वेसिं नाणंनाणीहि देसियं (१०८१) गुणाणमासओ दव्वं एगदव्वस्सिया गुणा लक्खणं पञवाणं तु उमओ अस्सिया मवे (१०८३) धम्मो अहम्मोआगासंकालो पुग्मल-जंतवो एस लोगो तिपत्रत्तो जिणेहि वरदंसिहि (१०८३) धम्मो अहम्मोआगासंदध्वं इक्किक्कमाहियं अनंताणिय दव्याणि कालोपुरणलजंतवो (१०४४) गइलक्खणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्खणो मायणं सव्वदव्याणं नहं ओगाहलक्खणं (१०८५) वत्तणालक्खणो कालोजीवो उवओगलखणो नाणेणं दंसणेणं च सुहेणय दुहेणय (१०८) नाणंच सणं चेव चरितंच तयो तहा पीरियं उयओगो य एवं जीवस्स लक्खणं (१०८७) सदंघयार-उज्जोओ पभा छाया तपोइया। वण्णरसगंधफासा पुग्णलाणं तु लक्खणं (१०४८) एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य संजोगाय विभागाय पञ्जवाणं तुलखणं (१०८५) जीवाजीवा य बंधोय पुण्णं पावाऽसवो तहा संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए हिया नव (१०९०) तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं भावेणं सहहंतस्स सप्मत्तं तं वियाहियं (१०९१) निस'गुवएसईआणाई सुत्त-बीयरुईमेव अभिगम-वित्याररूई किरिया-संखेव धम्मरूई (१०९२) भूपत्येणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावंच सह सम्मइयासवसंबरोय रोएइ उ निस्सग्गो (१०९३) जो जिणदिद्वे मावे चउबिहे सद्दहाइ सयमेव एमेव नन्नहति य स निसागरूइ ति नायव्यो (१०९४) एए चेव उ भावे उबइठे जो परेण सद्दहई छउपत्थेण जिणेण व उवएसवइत्ति नायव्यो (१०१५) रागो दोसो मोहोअन्नाणंजस्स अवगय होइ ____ आणाएरोयंतो सो खलु आणारूई नाम (१०९६) जो सुत्तमहिजंतो सुएण ओगाहई उसम्मत्तं अंगेण बहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायव्यो (१०९७) एगेण अणेगाइं पयाईजो पसरई उ सम्मत्तं उदए व्व तेलबिंदू सो बीयरूइ ति नायव्वो ॥१०७४-14 ||१०७५/-15 ||१०७६/18 ॥१०७७1-17 ॥१०७८1-18 ॥१०७९/-19 ॥१०८०11-20 ॥१०८१/21 ||१०८२||-22 For Private And Personal Use Only

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