Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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उत्तानपपाणि- पुट्ठो नो विनिहन्त्रेा कयरे ते खलु बाबीसं परीसहासमणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया जे भिक्खू सोडा नसा जिद्या अभिभूय मिक्खायरियाएपरिव्ययंतो पुछो नो विनिहन्त्रेजाइमे ते खलु बादीसं परिसहा सपणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया जे मिक्खू सोचा नचा जिया अभिभूय भिक्खायरियाए परिव्ययंतो पुठो नो विनिहनेझा, तं जहा दिगिछापरीसहे पिवासापरीसहे सीवपरीसहे उसिणपरिसहे दंसमसयपरीसहे अचेलपरीसहे अरइपरीसहे इत्थीपरीसहे चरियापरीसहे निसीहियापरीसहे सेज्जापरीसहे अक्कोसपरीसहे वहपरीसहे जायणापरीसहे अलामपरीसहे सक्कारपुरक्कारपरीसहे पन्नापरीसहे अनाणपरीसहे दंसणपरीसहे।1-1 (५०) परीसहाणं पविपत्ती कासवेणं पवेइया तंभे उदाहरिस्सामि आनुपुलिंसुणेह में
।।४९||-1 (५३) दिगिंछापरिगए देहे तबस्सी भिक्खू यामवं नछिदेन छिंदावएन पए न पयावए
॥५०॥-२ कालीपव्वंगसंकासे किसे धपणिसंतए मायने असणपाणस्स अदीनपणसो घरे
॥५१॥3 (५३) तओ पुष्टो पिवासाए दोगुंछी लजसंजए
सीओदगंन सेविजा वियहस्सेसणं चरे छिन्त्रावाएसपंसु आउरेसपिवासिए परिसुकूकमुहादीणेतं तितिक्खे परीसहं
॥५३॥-6 चरंतं विरयं लूहं सीयं फुसइ एगया नाइदेलं मुणी गच्छे सोचाणं जिनसासणं
||५४|1-8 न मे निवारणं, अत्यि छविताणं नविआई अहंतु अगि सेवामिइइ भिक्खून स्तिए
॥५५॥1-7 उसिणपरियावेणं परिदाहेण तजिए प्रिंसु वा परियावेणं सायं नो परिदेवए
॥५६||-8 उहाहिततेमेहावी सिणाणं नोवि पत्यए मायं नो परिसिंघानवीएजायअप्पयं पुट्ठोयदंसमसएहिं समरे व महामुणी नागो संगामसीसे वा सूरो अपिहणे परं
॥५८||-10 (६०) नसंतसेन वारेखा मणंपिनपओसए उवहन हणे पाणे भुंजते मंससोणियं
॥५९||-11 परिजुण्णेहिं वत्येहि होक्खामि त्ति अचेलए अदुवा सथेलए होक्खंदर मिक्खुन चितए
॥६०||-12 (६२) एगयाऽचेलए होइ सचेले आवि एगया
एयंघमहियं नच्चा नाणी नो परिदेवए गामाणुगामरीयंतं अणगारं अकिंधणं। आई अणुप्पवेसेज्जातं तितिखे परीसई
॥५७०-9
(१५)
HIE911-13
(५३)
॥६२|1-14
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