Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१९) सुद्धेरणाओ नम्राणं तत्व ठवेज भिक्खु अप्पार्ण जायाए घासमेसेज्जा रसगिद्धे न सिया भिक्खाए ( २२० ) पंताणि चैव सेवेजा सीयपिडं पुराणकुम्मासं (२२१) अदु वुक्क पुलागं वा जयणठ्ठाए निसेवए मंथुं जे लक्खणं च सुविणं च अंगविज्रं च जे पउंजंति न हु ते समणा बुश्चंति एवं आयरिएहिं अक्खाय ( २२२ ) इहजीवियं अणियमेत्ता पमट्ठा समाहिजोएहि ते कामभोगरसगिद्धा उववअंति आसुरे काए (२२३) तत्तो वि ष उव्यट्टिता संसारं बहु अणुपरिययंति बहुकम्पलेवणित्ताणं बीही होइ सुदुलहा तेर्सि (२२४) कसिणंपि जो इमं लोयं पडिपन्नं दलेज्ज इक्कस्स तेणावि से न संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया (२२५) जहा लाही तहा लोहो लाहा लोहो पवड्ढई दोमासकयं कर्ज कोडीए वि न निट्ठिय (२२६) नो रक्खसीसु गिज्झेना गंडवच्छासु ऽणेगचित्तासु जाओ पुरिसं पलोभित्ता खेलन्ति जहा व दासेहिं ( २२७) नारीसु नोपगिज्झेजा इत्थी विप्पजहे अणगारे धम्मं च पेसलं नच्चा तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पाणं (२२८) इइ एस धम्मे अक्खाए कविलेणं च विसुद्धपत्रेणं ( २५०) जाई सरितु भयवं सयंसंबुद्धो अनुत्तरे धन्मे पुत्तं ठवेत्तु र अभिणिक्खभइ नमी राया ( २३१ ) से देवलोगसरिसे अंतेउरवरगओ वरे भोए भुंजित्तु नमी राया बुद्धो भोगे परिचयई ( २३२) मिहिलं सपुरजणवयं बलमोरोहं च परियणं सव्वं विद्या अभिनिक्खंतो एगंतमहिडिओ मयवं ( २३३) कोलाहलगभूर्य आसी मिहिलाए पव्वयतंमि तइया रायरिसिंमि नमिमि अभिनिक्खमंतंमि ( २३४) अब्युट्ठियं रायरिसिं पव्वज्जाठाणमुत्तमं सक्की माहणरुवेण इमं वयणमम्बवी ( २३५) किष्णु भो अज मिहिलाए कोलाहलगसंकुला सुव्वंति दारुणा सद्दा पासाएसु गिहेसु य सरायणाणि ८/२१९ For Private And Personal Use Only ॥२१८॥ -12 1२१९॥ - 12 ॥१२०॥ - 13 ॥२२१ ॥ - 14 ॥२२२॥ -15 ॥२२३॥ - 16 ||१२४ ॥ - 17 ॥२२५॥ -18 तरिहिंति जे उ कार्हिति तेहिं आराहिया दुवे लोग -त्ति बेमि ॥२२७|| -20 ● जर्म अायणं समतं • नवमं अज्झयणं नमपव्वज्जा (२२९) चऊण देवलीगाओ उदवन्त्री माणुसम्मि लोगंमि उवसंत मोहणिजो सरई पोराणियं जाइ ॥२२६॥ -19 ॥२२८॥ - 1 ॥२२९॥ -2 ॥२३०॥ -3 ॥२३१॥ -4 ॥२३२॥ -5 ॥२३३॥ -8 ॥२३४॥ -7

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