Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||४८४||-44 ॥४८७1-47 (४८९) मबाप-१४ (४४३) दवगिणा महा रणोडम्ममाणेसुजंतुसु अत्र सत्ता पमोयंति रागदोसवसं गया ।।४८२|! -42 (४८r) एवमेव वयं मूठाकामपोगेसु मुच्छिया इन्झमाणं नकुल्झामो रागद्दोसणिणा जगं ||४८३||-44 (४८५) भोगे पोछा वमित्ताय लहुभूयविहारिणो आमोयमाणा गछंति दिया कामकमाइव (४८५) इमेय बड़ा फंदंतिममहत्यञ्जमागया वयं सत्ता कामेसुमविस्सामो जहा इमे ॥४८५||-45 (४८७) सामिसंकुललं दिस्स बज्झमाणं निरामिसं आमिसं सव्वतुन्झित्ता विहरिस्सामि निरामिसा 11४८६11-46 (rea) गिखोवमे उ नद्याणं कामे संसारवड्ढणे उरगो सुवण्णपासे व्यसंकमाणो तणूचरे नागोव्व बंधणं छित्ता अप्पणो वसहि वए एवं पत्यं महारायं उस्सुपारित्ति मे सुंय ॥४८८11-48 (r९०) चइत्ता विउलं रझंकाममोगे यदुधए निव्दिसपा निरामिसा निन्नेहा निप्परिग्गहा ।।४८९||-49 (४९१) सम्मधर्म वियाणित्ता चिधा कामगणे बरे तवं पगिज्झहक्खायं घोरं घोरपरक्कमा ||४९०|-60 (१९२) एवं ते कमसोबुद्धासव्वे धम्मपरायणा जम्ममञ्चुभउब्बिग्गा दुक्खस्ससंतगवेसिणो ॥४९911-51 (r९३) सासणे विगयमोहाणं पुर्विभावणभाविया अचिरेणेय कालेण दुस्खस्संतमुवागया ॥१२॥-52 (vi) राया सह देवीए माहणोय पुरोहिओ माहणी दारगाय सब्वे ते परिनिव्वुड-त्ति बेमि ।। ४९३||-59 उदसमं अक्षयर्ण समतं . पत्ररसमं अायणं-समिक्खुम् | (४१५) मोणं घरिस्सामि समिच धम्म सहिए उझुकडे नियाणछिने संयवजहिज्ज अकामकामे अन्नायएसी परिव्वए स भिक्खू॥४९४॥ -1 (५६) राओवरयं घरेज लाढे विरए वेयवियायरखिए पत्रे अभिमूप सव्वदंसी जे कम्हिविन मुछिए समिक्खू ॥९५॥.2 (४१७) अक्कोसवहं विइत्तुं धीरे मुणी चरे लाटे निचमायगुत्ते अव्वग्गमणे असंपहिले जे कसिणं अहियासए समिक्खू ॥४९६॥.3 (४९८) पंतं सपणासणं महत्ता सीउण्हं विविहं च दंसमसगं अव्यग्गमणे असंपहिड्डे जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥४९७||-4 (९) नो सकिकयमिच्छईन पर्यनो विय वंदणगंको पसंस से संजए सुल्दए तवस्सी सहिए आयगवेसए समिक्खू ॥९८॥-3 For Private And Personal Use Only

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