Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 53
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir E८४11-84 उसरायणाणि-११/९३ (१.५) को वा से औसहं देइ को वा से पुच्छई सुई को से पतंच पाणं या आहरितुपणामए HE७९||-70 (४) जयसे सुहो हइतया गच्छइ गोयरं भत्तपाणस्स अवाए बल्लाणिसराणिय ६८०11-80 (१९५) खाइत्ता पाणियंपाउं यम्लरेहिं सरेहि वा मिगचारियं धरित्ताणं गच्छई मिगधारियं ॥६८१11-01 (६९६) एवं समुडिओ भिक्खू एवमेव अणेगए मिगचारियं चरिताणं उड्दं पक्कमई दिसं ६८२॥-82 (६२७) जहा मिगे एग अणेगयारी अणेगवासे धुवगोचरेय एवं मुणी गोयरियं पविट्वे नो होलए नो वि य खिसएना ॥६८३||-83 (६९4) मियचारियं चरिस्सामि एवं पुत्ता जहासुरूं अम्मापिऊहिंऽणुनाओजहाइ उवहिं तहा (१९१) मियचारियं चरिस्सामि सम्बदुक्खविमोस्खणिं तुर्हि अव्मणुनाओगच्छ पुत्त जहासुहं ६८५11-85 (७००) एवं सो अम्माणिपरो अणुमामित्ताणं बहुविहं ममत्तं छिंदई ताहे महानागोव्य कंचुयं ।।६८६1-88 (७०१) इसी यिसंघमित्तेय पुत्तदारंय नायओ रेणुयं व पडे लग्गं निझुणिताण निग्गओ ॥६८७||-87 (७०२) पंचमहब्बयजुत्तो पंचहि समिओ तिगुत्तिगुतोय सब्मितरबाहिरओतवोकप्पंसि उल्नुओ ॥६८८11-88 (७०३) निप्पमोनिरहंकारो निस्संगो चत्तगारको समोयसव्यमूएसु तसेसु थावरेसुय ६८९||-80 (७०) लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा समोनिंदापसंसासुतहा माणावमाणओ ॥६९०|-80 (७०५) गारवेसुकसाएसुदंडसल्लमएसुय । नियत्तो हाससोगाओ अनियाणो अबंधवो ||६९||-21 (००६) अणिस्सिओ इई लोए परलोए अणिस्सिओ यासचंदणकप्पोय असणे अनसणेतहा ॥६९२||-02 (800) अप्पसत्येहिं दारेहिं सव्यओपिडियासवे अग्झप्पज्झाणजोगेहिं पसत्यदमसासणे ॥२३||-89 (Va4) एवं नाणेण धरणेण दंसणेण तवणय भावणाहि यसुद्धाहिं सम्मभावेतुं अपयं ॥१४॥-94 (७०९) बहुयाणि उ वासाणि सामण्णमणुपालिया मासिएण उ भत्तेण सिद्धि पत्तो अनुत्तरं ॥१५॥1-96 (७१०) एवं करंति संबुद्धा पंडिया पवियक्खणा विणिअष्टृति भोगेसु मियापुत्ते जहारिसी ॥६९६।-98 For Private And Personal Use Only

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