Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अन्नप४ (४) तेकामपोगेसु असञ्जमाणा माणुस्सएसजे यावि दिव्या मोक्खाभिकंखी अभिजायसष्टा तायंउवागम्म इमं उदाहु ॥४ -6 (14) असासंद इमं विहारं बहुअंतरायं न यदीहमाउं तम्हागिहंसिनरईलमाओ आमंतयामों परिस्सामुमोणं 1-7 (Pre) अह तायगोतत्य मुणीण तेसिं तवस वाधायकर वयासी इमं वयं देयविओवयंति महान होई असुयाण लोगो inn-8 (४५०) अहिज्ज येए परिविस्स विप्पे पुत्ते परिष्ठप्प गिर्हसिजाया भौधाण भोए सह इत्यियाहि आरण्णगा होह मुनी पसत्या ४५||-9 (४५१) सोयग्गिणा आयगुणिंधणेणं मोहाणिला पझलणाहिएणं संतत्तभावं परितप्पमाणलालप्पमाणंबहुहा बहुंच। |५||-10 (४५२) पुरोहियं तं कमसोऽणुणतं निमंतयंतं च सुए धणेणं जहक्कम कामगुणेहिं चैव कुमारगाते पसभिक्ख वक्कं ||५||-11 (५३) देया अहीयान भवंति ताणं भुत्ता दिया निंतितमं तमेणं जायाय पुत्तानहवंति ताणं कोणामते अणुमनेज एयं ॥४५२||-12 (४५) खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पगामदुक्खा अणिगामसोक्खा संसारमोक्खस्सविपक्खभूयाखाणीअणत्याणउकाममोगा ॥४५३॥-13 (४५५) परिव्ययंते अणियत्तकामे अहो य राओ परितप्पमाणे । अनप्पमत्तेधणमेसमाणे पप्पेतिमा पुरिसे जरंप ॥५४॥-14 (४५६) इमंच मे अत्यि इमं च नत्यि इमं च मे किचमिमं अकिवं तमेव मेवं लालप्पपाणं हरा हरंति त्ति कहं पमाओ ||४५५||-15 (४५७) धणं पभूयंसह इत्थियाहिं सयणातहा कामगुणा पगामा तवं कए तप्पइ जस्स लोगोतं सव्व साहीणमिहेव तुब्बं ॥४५६1-18 (५८) धणेण किंधम्मधुराहिगारे सयणेण वा कामगुणेहिं चेव समणा मविस्सामुगुणोहधारी बहिविहारा अभिगम्ममिक्खं ॥४५७|| -17 (१५१) जहाय अग्गी अरणी उसंतो खीरे घयं तेल्लमहा तिलेस एपेव जाया सरीरंसि सत्तासंमुछाई नासइ नावचिट्ठ ॥४५८||-18 (४०) नोइंदियगेज्झअमुत्तभावा अमुत्तमभावा विय होइ नियो । अन्नत्येहेउं निययस्स बन्यो संसारहेउंच वयन्ति बन्यं ॥४५९।। -19 (१४) जहा वयं धम्म अजाणमाणा पावं पुराकम्ममकासि मोहा ओरुबग्झमाणा परिरक्खियंतात नेव मुशोविसमायरामो ॥४६०।-20 (१२) अमायमि लोगंमि सव्वओ परिवारिए अमोहाहिं पड़तीहिं गिहंसि नरईलमे ६ -21 (ru) केण अव्याहओ लोगो केण वा परिवारिओ का वा अमोहा युत्ता जाया चितावरो हुमि ||२||-22 (rav) मधुणाऽमाहओ लोगोजराए परिवारिओ अमोहारपणी युत्ता एवं ताय विजाणए ||६||-23 For Private And Personal Use Only

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