Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरपणाणि-14/५८३ ॥५७४|| -27 ||५७५|| -28 ॥५७६।। -29 ॥५७७|| -30 ॥५७८|| -31 ||५७९॥ -32 ॥५८०।। -33 १५८॥ 94 ||५८२॥ -35 (५८६) सव्येए विइया मग्झंमिच्छादिही अणारिया विजमाणे परे लोएसपंजाणामि अप्पगं (५८७) अहमासि महापाणेजुइमं वरिससओवमे जासा पालिमहापाली दिव्वा वरिससओवमा (५८८) से चुए दंपलोगाओ माणुसं भवपागए अप्पणो यपरेसिवआठ जाणे जहा तहा (१८९) नाणा रुइंच छंदंच परिवजेश संजए अणद्वाजे य सव्वत्या इइविशामणसंचरे (५१०) पडिक्कमामिपसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो अहो उहिए अहोरायं इइ विग्जा तवं चरे (५९१) जंच मे पुच्छसी काले सम्म सुद्धेण चेयसा ताई पाउकरे बुद्धे तं नाणं जिनसासणे (५९३) किरियंच रोयई धीरे अकिरियं परिवजए दिहिए दिट्ठीसंपन्ने धम्मं घर सुदुसरं (५१३) एयंपुष्णपयं सोया अत्यधम्मोवसोहियं भरहो विभारहं वासं विद्या कामाइपब्बए (५१४) सगरो वि सागरतं मरहवासं नराहियो । इस्सरियं केवलं हिचादयाइपरिनिब्बुडे (५९५) यइता भारहं वासं चक्कवट्टी महाड्दिओ पव्यामभुवगओमघवं नाम महाजसो (५९) सणकुमारोमणुस्सिंदीचकवट्टी महिदिओ पुतंरजेठवेऊणं सो वि राया तवं चरे (१९०) चइता मारहे वासं चक्कयट्टी महिड्ढिओ संती संतिकरे लोए पत्तो गइमनुत्तरं (५९८) इक्खागरायवसमो कुंयू नाम नरीसरो विक्खायकित्ती मोक्खं गओ अनुतरं घिइम (५९१) सागरन्तं चइत्ताणं भरहं तं, यांसनरीसरो अहोय अश्यं फ्तो पत्तो गइमनुत्तरं (३००) चइता मारलं वासं चक्कवट्टी नराहिओ चइता उत्तमे भोए महापउमे तवंचरे (६०१) एगच्छत्तंपसाहिता महिमाणनिसूरणो हरिसेणो मणुस्सिंदो पत्तो गइमनुतरं (१०२) अनिओरायसहस्सेहिं सुपरिखाई दमंचरे जयनामो जिणक्खायं फ्तो गइमनुत्तरं (६०३) दसण्णरनं मुदियं चइत्ताणं पुणी चरे दसण्णपद्दो निक्खंतो सक्खं सक्केण चोइओ 11५८३।। -38 ॥५८४|| -37 ॥५८५] -38 ॥५८६|| -39 ५८७|| -40 ॥५८८|| -41 ॥५८९४-43 ॥५९०।-43 १५९१॥44 For Private And Personal Use Only

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