Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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॥६२६॥ - 26
॥६२७|| -27
॥६२८11-28
॥६२९॥ -29
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२||-32
समपर्ण (९३१) समया सव्यभूएसुसत्तुमित्तेसु या जगे
पाणाइवायविरई जावनीवाए दुक्कर (५४०) नियकालप्पमत्तेणं मुसायायवियञ्जणं
मासियव्यं हियं सचं निधाउत्तेणदुक्कर (६४१) दंतसोहणमाइस्सस अदत्तस्स वियजणं
अणवजेसणिजस्स गेण्हणा अविदुक्कर (१४२) विरई अमचेरस्स कामभोगरसन्नुणा
उणं महव्ययं बंधारेयव्यं सुदुक्करं (६४३) धणधन्नपेसवग्गेसुपरिग्गहविवनणं
सव्वारंभपरिमाओ निम्ममत्त सुटुक्कर (१४) चउबिहे वि आहारे राईभोयणवत्रणा
सबिहीसंचओ चेव वजोयब्बो सुदुक्कर (४५) छुहा तण्हाय सीउण्हं दंप्समसगवेयणा ।
अक्कोसा दुक्खसेझाय तणफासा जल्लमेव य (Ars) तालणातजणा चेव वहवंधपरीसहा ।
दुकुखं भिक्खायरिया जायणायअलाभया (५४७) कावोया जा इमा वित्ती केसलोओ य दारुणो
दुक्ख बंपव्वयं घोरं धारेउं य महप्पणो (६४८) सुहोइओ तुमं पुत्ता सुकुमालो सुमलिओ
नहुसी पभू तुमं पुत्ता सामण्णमणुपालिया (५४५) जावजीवमविसामो गुणाणं तु महाभरो
गुरुओ लोहमारो व्ब जो पुत्ता होइ दुव्वहो (१५०) आगासे गंगासोओच्च पडिसोओ गुणोदही
याहाहिं सागरो चेव तरिव्यो गुणोयही (१५१) बालुयाकवलो चेव निरस्साए उ संजमे
असिधारागमणंचेव दुक्करं चरिउंतवो (६५२) अही वेगंतदिट्टीए चरित्तेपुत्त दुक्को
जवालोहमया चेय चावेयव्वा सुदुक्कर (१५३) जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करा
तहादुक्करं करेउंजे तारूण्णे समणत्तणं (६५४) जहा दुक्खं मरेउंजे होइ बायस्स कोत्यतो
तहादुक्खं करेउंजे कीवेणं समणत्तणं (५५५) जहा तुलाए तोलेउंदुक्करं मंदरो गिरी
तहा निहुयं नीसंकंदुक्कर समणत्तणं (६५६) जहा भुयाहिं तरिउंदुक्कारपणागरो
तहा अणुवसंतेणं दुक्का दमसागरो
11६३३||-33
॥६३४||-34
॥६३५11-35
॥६३||-as
॥६३७||-97
॥६३८||२७
॥६३९||-39
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