Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनाय१३ ४१४||-9 I४१५|-10 II४१८11-13 (१३) दासा दप्तपणे आपसी मिया कालिंजरे नगे हंसा मयंगतीराएसोवागा कासिममिए ४११||-8 (11) देवा य देवलोगप्पि आसि अम्हे महिष्टिया इमा नो छष्टिजाईअत्रमत्रेण जा विणा ४१२||-7 (४१४) कम्मा नियाणप्पगडा तुमे राप! विचिंतिया तेसिंफलविवागेण विपओगमुवागया ।।४१३॥-8 (४५५) सबसोयप्पगडा कम्मा मए पुरा कडा ते अझ परिमुंजामो किं नुचित्तेवि से तहा (१) सव्वं सुचिणं सफल नराणं कडाण कम्माण न मोक्ख अत्यि अत्येहि कामेहि य उत्तमेहि आया ममं पुण्णफलोववेए (४१७) जाणासि संभूय महाणुभागं महिष्टियं पुण्णफलोववेयं चित्तं पिजाणाहितहेव रापंइसी जुई तस्सवियप्पभूपा ॥४१६|| - 11 (४१८) महत्थरूवा वयणाप्पभाया गाहाणुगीया नरसंधमझे जंभिक्खुणो सीलगुणोदवेया इह जयन्ते समणीमिजाओ ॥४१७१ - 12 (१५) उच्चोअए महु कक्के यबम्भे पवेइया आवसहायरमा इमं गिह चित्तधणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं (४२०) नदेहि गीएहि वाइएहिं नारीजणाहिं परिवासयन्ती मुंजाहि भोपाइइमाइ मिक्खु मम रोयई पव्वा हुदुक्खं ॥१९॥ - 14 (४२१) तं पुव्यनेहेण कयाणुरागं नराहियं कामगुणेसुगिद्धं धम्मस्सिओ तस्स हियाणुपेही चित्तो इमं वयणमुदाहरित्या ॥४२० - 18 (४२२) सव्यं विलवियं गीयं सव्वं नटुं विडस्वियं सव्ये आमरणा मारा सव्वे कामादुहावहा ॥४२१।। - 16 (१२५) बालामिरामेसुदुहावहेसु नतं सुहं कामगुणेसु रायं विरकामाण ततोवधणाणं जंभिक्खुणं सीलगुणे रयाणं ॥२२॥- 17 (४३४) नरिंद जाई अहमा नराणं सोवागजाई दुहओ गयाणं जहिं वयंसव्वजणस्स वेस्सा वसीअसोवागनिवेसणेसु ॥४२३॥ - 10 (१२५) तीसे य जाईइ उ पावियाए बुच्छामु सोवागनिवेसणेसु सबस्स लोगस्स दुगंछणिशा इहं तु कम्पाइपुरे कडाई ॥२४- 19 (१२) सो दाणिसि राप पहाणुभागो महिदिओ पुण्णफलोववेओ चइत्तु भोगाइ असासयाइंआदाणहेउं अभिणिक्खमाहि ॥२५॥-20 (१२५) इह जीविए राय असासयम्मि धणियं तु पुण्णाई अकुव्यमाणो से सोयई मधुमुहीवणीए धम्मं अकाऊण परंमिलोए ॥२६|| - 21 (१२८) जहेह सीहोवमियं गहाय मञ्चू नरं नेइ हु अन्तकाले । न तस्स पाया व पिया व माया कालम्भितम्मंसहरा भवन्ति ।।४२७|| - 22 (२९) न तस्स दुक्खं विमायतिनाइओन मितवमा नसुया न बंधवा पक्को सयं पद्यणुहोइ दुक्खं कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥४२८॥- 23 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114