Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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( १९५) तहियं गंधोदयपुष्पवासं दिव्वा तर्हि वसुहारा य बुट्ठा पहयाओ दुंदुहीओ सुरेहिं. आगासे अहो दाणं च घुटुं (२९६) सक्खं खुदीसइ तवोविसेसो न दीसई जाइविसेसु कोई सोवागपुत्तं हरिएससाहुं जस्सेरिसा इष्टि महाणुभागा (३९७ ) किं माहणा जोईसमारभंता उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा जं मग्गहा बाहिरियं विसोहि न तं सुइट्टं कुसला वयंति (३९८) कुसं च जूर्व तणकटुमरिंग सायं च पायं उदगं फुसन्ता आणाइ भूयाइ विजयन्ता मुख वि मन्दा पकरेह पावं (३९९ ) कहं चरे भिक्खु वयं जयामो पावाइ कम्माइ पुणोलयामो
अक्खाहि णे संजय उक्खपूडया कहूं सुइद्धं कुसला वयंति ॥ ३९८ ॥ - 40 (४००) छज्जीवकाए असमारभंता मोसं अदत्तं च असेवमाणा परिग्गहं इथिओ माण मायं एवं परित्राय चरंति दंता (४०१ ) सुसंवुडा पंचर्हि संवरेहिं इह जीवियं अणवकंखमाणा यसकाया सुइचत्तदेहा महाजयं जयइ जनसिद्धं (४०२) के ते जोई के व ते जोइठाणे का ते सुया किं व ते कारिसंगं
||३९९॥ - 41
उत्तरायणाणि - १२ / ३९५
कम्येहा संजमजोगसंती होमं हुमामि इसिणं पसत्यं
(४०३) के ते हरए के य ते संतितित्थे कहिं सिणाओ व रवं जहासि
॥ ३९४॥ 38
तिरसमं अज्झयणं-चित्तसंभूइजं
(४०७) जाईपराजिओ खलु कासि नियाणं तु हत्यिणपुरम्मि चुलणीए बंभदत्तो उवयत्रो पउमगुम्माओ
(४०८) कंपिल्ले संमूओ चित्तो पुण जाणो पुरिमतालम्मि सेट्ठिकुलम्मि विसाले धम्मं सोऊण पव्वइओ (४०९) कंपिलंमि य नगरे समागया दो वि चित्तसंमूया सुहदुक्खफलविवागं कहें ते एकूकमेक्कस्स (४१०) चक्कवट्टी महिढीओ बंमूदत्तो महायसो मारं वहुमाणं इमं वयणमब्बयी (४११) आसीमो मायरा दोर्वि अन्नमन्नवसाणुगा अन्नमन्नमणुरता अनमन्नहिएसिणो
॥३९५॥ 37
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॥३९६॥ - 98
एहाय ते कयरा संति भिक्खू कयरेण होमेज हुणासि जोडूं ॥ ४०१ ॥ - 43 (४०२) तबो जोई जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीरं कारिसंगं
113901-39
॥४००|- 42
आइक्खणे संजय जक्खपूइया इच्छामो नाउं भवओ सगासी ।।४०३ ॥ - 45 (४०४) धप्पे हरए बंभे संतितित्थे अणाविले अतपसनलेसे
४०२॥ - 44
जहिं सिण्डाओ विमलो विसुद्धो सुसीइओ पजहामि दोसं ॥ ४०४|| - 48 (४०५ ) एवं सिणाणं कुसलेहि दिनं महासिणाणं इसिणं पसत्वं
जहिंसिणाया विमला विसुद्धा महारिसी उत्तमं ठाण पत्त-त्ति बेमि ॥४०५॥ -47 • भारसमं अयणं स
१४०६ ॥ - 1
॥४०७॥-2
||४०८॥ 3
||४०९॥ - 4
।।४१० ।। ६

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