Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अायणं. (२७२) मासे मासे तु जो बालो कुसग्गेण तुजए न सोसुयक्खायधम्मसकलं अग्घइ सोलर्सि २७१11-44 (२७३) एयमहुँ निसामित्ता हेऊकारणयोइओ तओनर्मिरायरिसि देविंदो इणमब्बवी ||२७२।। -45 (२७४) हिरणं सुवणं मणिमुत्तं कसं दूसंच वाहणं कोसं वहावइत्ताणं तओ गच्छसि खत्तिया ||२७३|| -40 (२७५) एयमहुँ निसामित्ता हेऊकारणचोइओ तओ नमी रायरिसी देविंदं इणमबवी ||२७|| -47 (२७६) सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे सियाहु केलाससमा असंखया नरस्सलद्धरस्सन तेहिं किंचि इच्छा हुआगाससमा अनंतिया॥२७५।। -48 (२७७) पुटवी साली जवा चेव हिरण्णं पसुभिस्सह पडिपुण्णं नाल मेगस्स इइ यिज्जा तवं चरे ||२७६|| -49 (२७८) एयमहूं निसामित्ता हेऊकारणचोइओ तओनर्मि रायरिसि देविंदो इणमब्बवी ॥२७७||-50 (२७१) अच्छेरगमब्दए पोए चयसि पत्थिया असंते कापे पत्थेसि संकप्पेण विहन्नसि ॥२७८॥ -51 (२८०) एयमष्टुं निसामित्ता हेऊकारचोइओ तओनमी रायरिसी देविंदं इममब्बवी २७९॥ -62 (२८१) सायंकामा विसं कामा कामा आसीविसोवमा कामे पत्येमाणा अकामाजंति दो गई २८०-53 (२८२) अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गई माया गऊईपडिग्याओ लोमाओदुहओभयं २८१॥ -54 (२८३) अवउज्झिऊण माहणरूवं विउब्बिऊण इंदत्तं वन्दइ अमित्त्युणतो इमाहि महुराहि वग्गूहिं ॥२८२॥ -65 (२८४) अहो ते निजिओ कोहो अहो माणो पराजिओ अहो निरक्किया माया अहो लोमो वसीकओ २८३|| -88 (२८५) अहो ते अजयं साहु अहो ते साहु मद्दवं अहो ते उत्तमाखंती अहो ते मुक्ति उत्तमा ॥२८४|| -57 (२८३) इहंसि उत्तमो मंते पच्छा होहिसि उत्तमो लोगुत्तमुत्तमं ठाणं सिद्धिं गच्छसि नीरओ २८५|| -58 (२८७) एवं अमित्युणंतोरायरिसिं उत्तमाएसद्धाए पयाहिणं करेंतो पुणो पुणो यदई सक्को ॥२८६।। -50 (२८८) तो वैदिऊण पाए चक्कंकुसलक्षणे मुणिवरस्स आगासेणुप्पइओ ललियचवलकुंडलतिरीडी ॥२८७|| -60 (१८९) नमी नमेइ अप्पाणं सक्खं सक्केण चोइओ चइऊण गेहं वइदेही सापण्णे पशुवडिओ ||२८८||-61 For Private And Personal Use Only

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