Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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चउत्यं अञ्झणं असंखयं
(११६) असंखयं जीविय मा पमायए जरीवणीयस्स हु नत्थि ताणं
एवं विजाणाहि जणे पत्ते किष्णुविहिंसा अजया गर्हिति ॥११५॥ - 1 (११७) जे पावकम्मेहिं धणं मणूसा समाययन्ती अमई गहाय पहाय ते पासपयट्टिए नरे वेराणुबद्धा नायं उवेति
1199611-2
( ११८) तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्पुणा किचड़ पावकारी एवं एया पेच इहं च लोए कडाण क्रम्माण न मुक्ख अस्थि ( ११९ ) संसारमावत्र परस्स अट्ठा साहारणं जं च करइ कम्पं कम्मस्स ते तस्स उ वेयकाले न बंधवा बंधवयं उर्वेति (१२० ) वित्तेण ताणं न लपे पमत्ते इमम्मि लोए अदुवा परत्या दीवष्णद्वेव अनंतमोहे नेयाउयं दद्रुमदठुमेव (१२१) सुत्तेसुयायी पडिबुद्धजीवी न दीससे पण्डिए आसुपत्रे घोरा मुहुत्ता अवलं सरीरं मारंडपक्खी व चरेऽपमत्ते (१२२) चरे पयाई परिसंकमाणो जं किंचि पासं इह मण्णमाणो लामंत्तरे जीविय बूहड़ता पच्छा परित्राय मलावधंसी (१२३) छन्दंनिरीहेण उयेइ मोक्खं आसे जहा सिक्प्रियवम्मधारी पुव्वाई वासाई चरेप्पमत्ते तम्हा मुणी खिम्पमुवैइ मोक्खं । ( १२४ ) स पुव्यमेवं न लभेज पच्छा एसोक्मा सासयवाइयागं विसीयई सिढिले आउयम्मि कलोवणीए सरीरस्स ए (१२५) खिप्पं न सक्केइ विवेगमेउं तम्हा समुद्वाय पहाय कामे समिा लोयं समया महेसी आयाणरक्खी व घरऽ प्पमत्ती (१२६) मुहं मुहं मोहगुणे जयन्तं अमेगरूवा समणं चरन्तं
फासा फुसन्ति असमंजसं च न तेसि भिक्खू मणसा पउस्से ॥१२५॥ - 11 (१२७) मन्दाय फासा बहुलोहणिजा तहप्पगारेसु मणं न कुजा रक्खा कोहं विणएज माणं मायं न सेवेज पहेज लोह
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(१२८) जे संखया तुच्छपरप्पवाई ते पिनदोसाणुगया परज्झा
(१२९) अण्णवंसि महोघंसि एगे तिष्णे दुरुत्तरं तत्थ एगे महापन्ने इमं पण्हमुदाहरे (१३०) संतिमे य दुवे ठाणा अक्खाया मारणंति अकाममरणं चैव सकाममरणं तहा
(१३१) बालाणं अकामं तु मरणं असई भये
पण्डियाणं सकामं तु उक्कोसेण सई भये
उत्तरयणाणि - ४ /११६
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॥११७॥1-3
1199211-4
।।११९।। -5
1192011-6
॥१२६॥-12
एए अहम्मे ति दुर्गुछमाणी कंखे गुणे जाव सरीरभेउ -त्ति बेमि ॥१२७॥ - 13 • उ अझ समते ●
पंचमं अनवणं- अकाममरणिजं
1193911-7
॥१२२॥ -8
॥ १२३॥ -७
||१२४॥ -10
।।१२८|| -1
॥१२९॥ -2
1193011-9

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