Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उसरममयमाणि-२/२ ॥८१॥-38 ॥८२||-34 ॥८३||-36 ||८४||-38 ॥८५1-97 ॥८६॥-38 ||८७॥-30 1041-40 ॥८९॥-41 (८३) तेगिळं नामिनंदेशा संचिक्खत्तगयेसए एवं खुतस्स सामण्णंजन कुजानकारये (1) अचेलगस्स लूहस्स संजयस्स तयसिणो तणेसुसयमाणस्स हुआ गायविराहणा आयवस्स निवाएण अउला हवाइ घेणा एवं नधानसेवेति तंतुजं तणतजिया किलित्रगाए मेहावी पंकेण वरएणका पिंसुवा परियावेण सायं नो परिदेवए थएज निरापेही आरियंधम्मऽनुतरं जाव सरीरभेउत्तिजल्लंकाएणधारए अभिवायणमन्मुडाणं सामी कुझा निमंतणं जे ताईपडिसेयंति न तेसिपीहए मुनी अणुक्कसाई अप्पिच्छे अत्राएसी अलोलुए रसेसु नाणुगिन्झेशा माणुतप्पेज पनवं (८१) से नणं मए पुव्वं कम्मानाणफला कडा जेणाहं नाभिजाणामि पुट्टो केणइ कण्हुई अह पच्छा उइअंति कमानाणफला कडा एवमस्सासि अप्पाणं नया कामविवागयं निरहगम्मि विरओ मेहुणाओ सुसंयुडो जो सक्खं नामिजाणापि धम्म कहाणपावर्ग (१२) तयोवहाणमादाय पडिम पडिवजओ एवंपि विहरओ मेछउमंन नियई नत्यि नणं परेलोए इसीवादी तवस्सिणो अदुवा वंचिओमित्ति इइ भिक्खून चिंतए (९) अभूजिणा अत्यि जिणा अदुवावि भविस्सई मुसं ते एवमाहंसु इइ भिक्खू न चिंतए एए परीसहासव्वे कासवेण पवेइया जे भिक्खून विहम्मेझा पुष्टो केणइकण्हुई-तिबेमि बीयं अध्ययण समतं. तइयं अझयणं-चाउरंगिन (९५) चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मिय वीरियं (१७) समावराण संसारे नाणागोत्तासुजाइसु कम्मा नाणाविहा कट पुढो विस्समिया पया (१८) - एगया देवलोएसु नरएसुविएगया एगया आसुरं कायं आहाकम्भेहिं गच्छई ॥९०11-42 1९1-43 ॥९२il-44 ॥९३1-45 ||९||-48 ||१५||-1 ॥१६॥-2 ॥९७१-3 For Private And Personal Use Only

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