Book Title: Agam 43 Uttarajjhayanam Mulsutt 04 Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥९८1-4 ||१९||-6 1॥१००||-8 ॥१०१||-7 ॥१०२1-8 ।।१०३11-9 ||१०४||-10 ॥१०५||-11 (११) एगया खतिओहोइ तओ चंडाबोक्कसो तओ कीडपयंगो यतओ कुंथुपिपीलिया (१००) एवमायनोणीसु पाणिणो कम्मकिविसा न निविजंति संसारे सवठेसु व खतिया (१०१) कम्मसंगेहिं सम्मूढा दुक्खिया बहुवेयणा अमाणुसासुजेणीसु विणिहम्मति पाणिणो (१०२) कम्माणं तु पहाणाए अणुपुब्बी कयाइउ जीवा सोहिमणुष्पत्ता आययंतिमणुस्सर्य (१०३) माणुस्सं विग्गई लटुंसुई धम्मस्स दुलहा जंसोधा पडिवअंति तवं खंतिमहिसयं (१०४) आहच्च सवणं लगुसद्धापरमदुल्लहा सोचा नेआउयं मग्गं लहवे परिभस्सई (१०५) सुहंच लटुंसद्धं च वीरयं पुण दुल्लहं बहवे रोयमाणा विनोयणं पडिवाए (१०१) माणुसतंमि आयाओजो धप्पं सोच सहहे तवसी वीरियं लटुंसंपुढे निझुणे रयं (१०७) सोही उज्जुयभूयस धम्मो सुखस्स चिटई निव्वाणे परमंजाइ ययसित्तिव्य पायए (१०८) विगिंच कम्मुणो हेउं जसं संचिणुखंतिए पाढवं सरीरं हिया उड्ढं पक्कमई दिसं (१०९) विसालिसेहिं सीलेहिं जक्खा उत्तरउत्तरा महासुका व दिपंता मन्नता अपुणचवं (११०) अप्पिया देवकामाणं कामरुवविउव्यिणो उड्दकप्पेसु चिट्ठति पुव्या वाससया बहू (111) तत्य ठिधा जहाठाणं चक्खा आउक्साए चुया । यति माणुसं जोणि से दसंगेऽभिजायई (११२) खेतं वत्युं हिरणंच पसयी दासपोरुसं चत्तारि कामखंघाणितत्य से उववन्झई (११३) मित्तवं नायब होइ उच्चगोएययण्णवं अप्पायंके महापत्रे अभिजाए जसोयले (११४) भोया माणुस्सए मोए अप्पडिरुवे अहाउयं पुव्वं विसुद्धसद्धम्मे केवलं बोहिं बुझिया (11५) चउरंगं दुल्लहं नया संजमं पडिवञ्जिया तवसा धुयकम्मंसे सिद्धेहवइ सासए-त्ति बेमि तपं अजायणं समतं. ॥१०६11-12 ॥१०७||-13 ||१०८||-14 ।।१०९||-16 199011-16 |१११॥-17 ||१२||-18 ॥११३॥-18 ||१४||-20 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114