Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 21
________________ जीवाभिगमसूत्रे जीवाजीवाभिगम उक्तो व्यवस्थापितश्च अतस्तृतीयोपाङ्ग इति कथ्यते एतादृशमेव सम्बन्धमनुचिन्त्य स्थविरा भगवन्तः प्रज्ञापितवन्त इति कथयिष्यति ॥ इदञ्च जीवाजीवाभिगमाख्यमध्ययनं सम्यग् ज्ञानकारणत्वेन परम्परया सिद्धिपदप्रापकत्वात् श्रेयो भूतम् तत्र माभूत् कोऽपि विघ्नः इति सकलविघ्नोपशान्तये शिष्याणां मङ्गलबुद्धिपरिग्रहाय च वस्तुतो मङ्गलरूपेऽपि प्रकृतग्रन्थे मङ्गलं प्रदर्श्यते--तन्मङ्गलमादिमध्यावसानभेदेन त्रिविधम् तत्रादिमङ्गलम् इह खलु जिण मयं' इत्यादि अत्र परमपावनजिननामकथन मेव मङ्गलम् मङ्गलं द्विविधं द्रव्यतो भावतश्च, तत्र द्रव्यमङ्गलं दध्यक्षतादिकं भावमंगलन्तु सूत्ररूपम् अत्र भावमङ्गलाधिकारः, अधिकन्तु भगवत्याः प्रमेय चन्द्रिकायां द्रष्टव्यमिति ॥ का कथन किया है और उसे व्यवस्थापित किया है । अतः यह तृतीय उपांगरूप से कहा गया है। ऐसे ही सम्बन्ध का विचार कर सूत्रकार ने प्रथम सूत्रपाठ में "थेरा भगवंतो" स्थविर भगवन्तों ने इस अध्ययन को कहा है" इस से भूतकालिक क्रिया का प्रयोग किया है । ___ यह जीवाजीवाभिगम नाम का अध्ययन सम्यग्ज्ञान का कारण होने से परम्परारूप से सिद्धिपद को प्राप्त कराने वाला है अतः यह कल्याण स्वरूप है । फिर भी इस में कोई भी विघ्न न आवे इस भाव से विघ्न की शान्ति के लिये और शिष्यों में मंगल बुद्धि का ग्रहण हो इसके लिये वस्तुतः यह मंगलस्वरूप होने पर भी इस प्रकृत शास्त्र में मंगलाचरण दिखलाया जाता है आदिमंगल, मध्यमंगल और अवसानमंगल के भेद से यह मंगल तीन प्रकार का कहा गया है "इह खलु जिणमयं" इत्यादि रूप से जो कथन है वह आदि मंगलरूप है। क्योंकि परमपावन जिननाम का कथन ही मंगलरूप होता है। द्रव्यमंगल और भावमंगल के भेद से मंगल में द्विविधता आती है । दधि अक्षत आदि ये सब द्रव्यमंगल है । વ્યવસ્થિત કર્યું છે, તેથી તેને ત્રીજા ઉપાંગરૂપ ગણ્યું છે. આ પ્રકારના સંબંધને વિચાર रीने सूत्राचे प्रथम सूत्रामा (थेरा भगवंतो) स्थवि२ साता मा अध्ययननु કથન કર્યું છે. આ પ્રકારની ભૂતકાલિક ક્રિયાને પ્રયાગ કર્યો છે. આ જીવાજીવાભિગમ નામનું અધ્યયન સમ્યજ્ઞાન પ્રાપ્ત કરાવનાર હોવાથી પરમ્પરા રૂપે સિદ્ધિ પદની પ્રાપ્તિ કરાવનારું છે. તેથી તે કલ્યાણ સ્વરૂપ જ છે. છતાં પણ તેમાં કઈ પણ વિદન ન આવે એ હેતુથી, વિદનની શાંતિ માટે અને શિષ્યોમાં મંગળબુદ્ધિ આવે તે હેતુથી–આ અધ્યયન પતે જ મંગળરૂપ હોવા છતાં પણ. આ શાસ્ત્રમાં મંગળાચરણું બતાવવામાં આવે છે. આ મંગળના ત્રણ ભેદ છે. (૧) આદિ મંગળ, (૨) મધ્યમંગળ मन (3) सत्य भण. 'इह खलु जिणमयं" त्याहि २ ४थन छ ते माह भाग ३५ छ, १२९५ है ५२म પવિત્ર જિનનામનું, કથન જ મંગળરૂપ હોય છે. મંગળના બે પ્રકાર નીચે પ્રમાણે છે-(૧) દ્રવ્યમંગળ અને (૨) ભાવ મંગળ. દહીં, અક્ષત આદિ દ્રવ્યમંગળ છે. સૂત્ર ભાવમંગળ જીવાભિગમસૂત્ર

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