Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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पंचम शतक : तृतीय उद्देशक
FIFTH SHATAK (Chapter Five): THIRD LESSON
ग्रन्थिका GRANTHIKA (THE KNOT)
आयुबन्ध विषयक अन्यतीर्थिकों की मान्यताएँ BELIEF OF OTHER SCHOOLS ABOUT LIFE-SPAN BONDAGE १.[प्र.] अण्णउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति भासंति पण्णवेंति, परूवेंति,
से जहानामए जालगंटिया सिया आणुपुव्विगढिया, अणंतरगढिया, परंपरगढिया, अन्नमन्नढिया, अन्नमन्नगुरुयत्ताए, अन्नमन्नभारियत्ताए, अन्त्रमन्त्रगुरुयसंभारियत्ताए अन्त्रमन्त्रघडत्ताए चिट्ठति, एवामेव बहूणं जीवाणं बहू आजातिसहस्सेसु बहूई आउयसहस्साई आणुपुब्बिगढियाई जाव चिट्ठति ।
एगे वियणं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाई पडिसंवेदेइ, तं जहा - इहभवियाउयं च परभवियाउयं च; जं समयं इहभवियाज्यं पडिसंवेदेइ तं समयं परभवियाज्यं पडिसंवेदेइ, जाव से कहमेयं भंते! एवं ?
[ उ. ] गोयमा ! जं णं ते अन्नउत्थिया तं चैव जाव परभवियाउयं च; जे ते एवमाहंसु तं मिच्छा ।
अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि से जहानामए जालगंटिया सिया जाव अन्नमनघडत्ताए चिट्ठति, एवामेव एगमेगस्स जीवस्स बहूहिं आजाइसहस्सेहिं, बहूई आउयसहस्साइं आणुपुब्बिगढियाई जाव चिट्ठति ।
एगे वियणं जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पडिसंवेदेइ । तं जहा - इहभवियाउयं वा परभवियाउयं वा, जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं समयं परभवियाज्यं पडिसंवेदेइ, जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ नो तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ ।
पडिसंवेदेति । एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं एगं आउयं पडिसंवेदेइ, तं जहा - इहभवियाउयं वा, परभवियाउयं वा ।
इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणाए, नो परभवियाज्यं पडिसंवेदेड, परभवियाउयस्स पडिसंवेदणाए नो भवियाज्यं ।
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१.[प्र.] भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं
कि जैसा कोई (एक) जालग्रन्थि (गाँठें लगी हुई, जाल) हो, जिसमें क्रम से गाँठें दी हुई हों, एक के बाद दूसरी अन्तररहित (अनन्तर ) गाँठें लगाई हुई हों, परम्परा से गूँथी हुई हों, परस्पर गूँथी हुई हों, ऐसी वह जालग्रन्थि परस्पर विस्तार रूप से, परस्पर भाररूप से तथा परस्पर विस्तार और भाररूप से, परस्पर संघटित रूप से यावत् रहती है, ( अर्थात् जाल तो एक है, लेकिन उसमें जैसे अनेक गाँठे संलग्न रहती हैं) वैसे ही बहुत-से जीवों के साथ क्रमशः हजारों-लाखों जन्मों से सम्बन्धित बहुत-से आयुष्य रस्पर क्रमशः गूंथे हुए हैं, यावत् परस्पर संलग्न रहते हैं।
पंचम शतक : तृतीय उद्देशक
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Fifth Shatak: Third Lesson
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