Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
h55555555555555555555555555555555555
'गौतम ! तुम (अपनी शंका के निवारणार्थ उन्हीं देवों के पास) जाओ। वे देव ही इस प्रकार की जो भी बातें हुई थीं, तुम्हें बतायेंगे।'
[Q.3] Addressing Gautam and others, Shraman Bhagavan Mahavir said as follows-“Gautam ! In between your courses of meditation (dhyanantarika) you had this thought in your mind—“To know about gods I should approach Bhagavan Mahavir, offer him homage and obeisance, duly worship him and put forth my said queries.' That is why you have rushed to where I am seated. Gautam ! Isn't that so ?”
[Ans.] Yes, Bhante ! Indeed, that is so.
"Gautam ! Go to those gods (to seek answers to your queries) and they will tell you all that transpired in this regard."
[४] तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अन्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति, वंदित्ता णमंसित्ता जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तए णं ते देवा भगवं गोयमं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता हट्ठा जाव हयहियया खिप्पामेव अब्भटेंति, अन्भुट्टित्ता खिप्पामेव पच्चुवागच्छंति, २ त्ता जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति, २ त्ता जाव णमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते ! अम्हे महासुक्काओ कप्पाओ महासामाणाओ विमाणाओ दो देवा महिडिया जाव पादुभूआ। तए णं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो णमंसामो, २ त्ता मणसा चेव इमाइं एयारूवाई वागरणाई पुच्छामो-कइ णं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाई सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति ? तए णं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मणसा पुढे अम्हं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेति-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत्त अंतेवासीसयाइं जाव अंतं करेहिति। तए णं अम्हे समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा पुढेणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो, २ त्ता जाव पज्जुवासामो त्ति कटु भगवं गोयमं वंदंति नमसंति, २ त्ता जामेव दिसिं पाउत्भूआ तामेव दिसिं पडिगया।
[४] श्रमण भगवान महावीर द्वारा इस प्रकार की आज्ञा मिलने पर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन-नमस्कार किया और फिर जिस तरफ वे देव थे, उसी ओर जाने का संकल्प किया।
उधर उन देवों ने भगवान गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देखा तो वे अत्यन्त हर्षित हुए यावत् उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया। वे शीघ्र ही खड़े हुए, फुर्ती से उनके सामने गए और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहाँ उनके पास पहुँचे। फिर उन्हें वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार बोले-'भगवन् !' महाशुक्रकल्प (सप्तम देवलोक) से, महासामान (महास्वर्ग) नामक महाविमान से हम दोनों महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव यहाँ आये हैं। यहाँ आकर हमने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया और मन से ही इस प्रकार की ये बातें पूछीं कि-'भगवन् ! आप देवानुप्रिय के कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत्
पंचम शतक : चतुर्थ उद्देशक
(57)
Fifth Shatak : Fourth Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org