Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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[उ. ] गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ, पारि०, माया०, अपच्च०, मिच्छादंसणकिरिया सिय* कजति, सिय नो कजति। अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ तओ सेय पच्छा सब्बाओ ताओ पयणुई भवंति। म
५. [प्र. ] भगवन् ! भाण्ड (किराने का सामान) बेचते हुए किसी गृहस्थ का वह किराने का माल कोई अपहरण कर (चुरा) ले, फिर उस किराने के समान की खोज करते हुए उस गृहस्थ को, क्या
आरम्भिकी क्रिया लगती है, या पारिग्रहिकी क्रिया लगती है ? अथवा मायाप्रत्ययिकी अप्रत्याख्यानिकी या + मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लगती है ?
[उ. ] गौतम ! (चोरी हुए किराने को खोजते हुए पुरुष को) आरम्भिकी क्रिया लगती है, तथा 4 卐 पारिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी एवं अप्रप्याख्यानिकी क्रिया भी लगती है, किन्तु मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया ॥
कदाचित् लगती है, और कदाचित् नहीं लगती। (किराने के सामान की खोज करते हुए) यदि चुराया है 卐 हुआ सामान वापस मिल जाता है, तो वे सब (पूर्वोक्त) क्रियाएँ प्रतनु (अल्प-हल्की) हो जाती हैं।
5. [Q.] Bhante ! While selling bhaand (earthenware or groceries) a householder's such merchandise is stolen and then he starts searching them. In the process, is he liable of involvement in arambhiki kriya (sinful activity) or parigrahiki kriya (activity of possession) ? Or is he liable of involvement in mayapratyayiki kriya (activity of deceit) or apratyakhyaniki kriya (activity of non-renunciation) or mithyadarshanpratyayiki kriya (activity of perverted faith)?
(Ans.] Gautam ! He is (while doing so) liable of involvement in arambhiki kriya (sinful activity). parigrahiki kriya (activity of possession), mayapratyayiki kriya (activity of deceit) and apratyakhyaniki kriya (activity of non-renunciation). However, as regards mithyadarshan-pratyayiki kriya (activity of perverted faith), sometimes he is liable to involvement and sometimes not. While
searching, if he recovers the stolen goods he is liable to involvement in 51 all the said activities to a very mild degree.
६. [प्र. ] गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स कइए भंडं साइज्जेज्जा, भंडे य से अणुवणीए ॐ सिया, गाहावइस्स णं भंते ! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्त किरिया
कज्जइ ? कइयस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कज्जइ जाव मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जइ ? म [उ.] गोयमा ! गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाणिया। ॐ मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ, सिय नो कज्जइ। कइयस्स णं ताओ सबाओ पयणुई भवंति।
६. [प्र. ] भगवन् ! किराना बेचने वाले गृहस्थ से किसी व्यक्ति ने किराने का माल खरीद लिया, 5 उस सौदे को पक्का करने के लिए खरीददार ने सत्यंकार-(बयाना या एडवांस) भी दे दिया, किन्तु 卐 वह (किराने का माल) अभी तक अनुपनीत-(ले जाया गया नहीं) है; (बेचने वाले के यहाँ ही पड़ा है);
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भगवती सूत्र (२)
(82)
Bhagavati Sutra (2)
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