Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 553
________________ 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步$$$$$$$$ to... rectangular constitution. [2] The same is true for matter particles (pudgala) that are consciously transformed as fully developed sense organ of touch of bodies of minute one-sensed-earth-bodied beings (paryaptak sukshma prithvikaayik ekendriya sparshanendriya prayoga parinat pudgala). ४३. एवं जहाऽऽणुपुब्बीए जस्स जइ इंदियाणि तस्स तइ भाणियव्याणि जाव जे पज्जत्ता सबट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदियसोइंदिय जाव फासिंदियपयोगपरिणया वि ते वण्णओ कालवण्णपरिणया जाव आययसंठाणपरिणया वि। दंडगा ८। ४३. इसी प्रकार अनुक्रम से सभी आलापक कहने चाहिए। विशेष यह कि जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उतनी कहनी चाहिए। यावत् जो पुद्गल पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक देव-पंचेन्द्रिय-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में, यावत् संस्थान से आयत संस्थान के रूप में परिणत हैं। [ आठवाँ दण्डक पूर्ण हुआ।] ___43. All the remaining (aforesaid) follow the same pattern on the basis of the number of sense organs it has... and so on up to... The matter particles (pudgala) that are paryaptak Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik dev panchendriya (shrotrendriya to sparshanendriya) prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as five sensed (hearing to touching) bodies of Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik divine beings beyond the Kalps) are, in fact, consciously transformed also as attributes of black colour... and so on up to... rectangular constitution. (Eighth Dandak Concluded] नौवाँ दण्डक NINTH DANDAK (इस दण्डक में शरीर, इन्द्रिय तथा वर्णादि की अपेक्षा से कथन है।) [This section describes the aforesaid beings in context of body-types, sense organs and constitution including colour.] ४४. [१] जे अपज्जत्तासुहमपुढविकाइय-एगिंदियओरालिय-तेया-कम्मासरीरफासिंदियपयोगपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणया वि जाव आयतसंठाणपरिणया वि। [२] जे पज्जत्तासुहुमपुढविकाइया एवं चेव। ४४. [१] जो पुद्गल अपर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिक-तैजसकार्मणशरीर-स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोग- परिणत हैं, वे वर्ण से काले वर्ण के रूप में भी परिणत हैं, यावत् संस्थान से आयत-संस्थान के रूप में परिणत हैं। [२] जो पुद्गल पर्याप्तक-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिकएकेन्द्रिय-औदारिक-तैजस-कार्मणशरीर-स्पर्शेन्द्रिय-प्रयोगपरिणत हैं, वे भी इसी तरह (पूर्ववत्) जानने चाहिए। अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक (495) Eighth Shatak : First Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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