Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 559
________________ 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步日 (Ans.] Gautam ! It could be transformed either due to truthful 4 sinning conscious activity of mind (aarambh satya manah-prayoga parinat), or... and so on up to... untruthful non-tormenting conscious + activity of mind (asamaarambh satya manah-prayoga parinat). ५३. [प्र. १ ] जइ मोसमणप्पयोगपरिणए किं आरंभमोसमणप्पयोगपरिणए वा ? [उ.] एवं जहा सच्चेणं तहा मोसेण वि। [२] एवं सच्चामोसमणप्पयोगपरिणए वि। एवं ॐ असच्चामोसमणप्पयोगेण वि। ५३. [प्र. १] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, मृषामनःप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह ॐ आरम्भ-मृषामनःप्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् असमारम्भ-मृषामनःप्रयोग-परिणत होता है ? । [उ. ] गौतम ! जिस प्रकार (पूर्वोक्त विशेषणयुक्त) सत्यमनःप्रयोग-परिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार (पूर्वोक्त विशेषणयुक्त) मृषामनःप्रयोग-परिणत के विषय में भी कहना चाहिए। [२] इसी म प्रकार (पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त) सत्यमृषा-मनःप्रयोग-परिणत के विषय में भी तथा इसी प्रकार असत्य-मृषामनःप्रयोग-परिणत के विषय में भी कहना चाहिए। 53. (Q. 1) Bhante ! If a substance is transformed due to untruthful 56 conscious activity of mind (mrisha manah-prayoga parinat), then is it transformed due to untruthful sinning conscious activity of mind ! (aarambh mrisha manah-prayoga parinat), ... and so on up to... or untruthful non-tormenting conscious activity of mind (asamaarambh mrisha manah-prayoga parinat)? $i (Ans.] Gautam ! What has been said with regard to truthful conscious activity of mind (satya manah-prayoga parinat) should also be repeated with regard to untruthful conscious activity of mind (mrisha manahprayoga parinat). [2] The same pattern holds good for truthfuluntruthful conscious activity of mind (satya-mrisha manah-prayoga parinat), and non-truthful-non-untruthful conscious activity of mind (asatya-amrisha manah-prayoga parinat). ५४. [प्र. ] जइ वइप्पयोगपरिणए किं सच्चवइप्पयोगपरिणए मोसवयप्पयोगपरिणए ? [उ. ] एवं जहा मणप्पयोगपरिणए तहा वयप्पयोगपरिणए वि जाव असमारंभवयप्पयोगपरिणए वा। ज , ५४. [प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य, वचनप्रयोग-परिणत होता है तो, क्या वह + सत्यवचन-प्रयोग-परिणत होता है, मृषावचन-प्रयोग-परिणत होता है, सत्यमृषा-वचन-प्रयोग परिणत होता है अथवा असत्यामृषा-वचन-प्रयोग-परिणत होता है? । म [उ.] गौतम ! जिस प्रकार मनःप्रयोगपरिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार वचन-प्रयोग-परिणत के विषय में भी कहना चाहिए; यावत् वह असमारम्भ-वचन-प्रयोग-परिणत भी होता है। By)))555555555555555555555555555555555555558 अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक (501) Eighth Shatak: First Lesson 55555555555555555555555555555555555% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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