Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 588
________________ transformed), or two of these substances could be prayoga parinat 4 (consciously transformed) and the remaining one mishra parinat (jointly transformed), or one could be mishra parinat (jointly transformed) and the other two visrasa parinat (naturally transformed), or two could be mishra parinat (jointly transformed) and the remaining one visrasa parinat (naturally transformed), or one could be prayoga parinat (consciously transformed), one mishra parinat (jointly transformed) and ___one visrasa parinat (naturally transformed). ८७. [प्र. ] जइ पयोगपरिणया किं मणप्पयोगपरिणया, वइप्पयोगपरिणया, कायप्पयोगपरिणया ? [उ. ] गोयमा ! मणप्पयोगपरिणया वा० एवं एक्कगसंयोगो, दुयसंयोगो तियसंयोगो य भाणियव्यो। ८७. [प्र. ] भगवन् ! यदि वे तीनों द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं अथवा वे कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? 卐 [उ. ] गौतम ! वे (तीन द्रव्य) या तो मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं, + अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं। इस प्रकार एकसंयोगी (असंयोगी), द्विकसंयोगी और त्रिकसंयोगी भंग ॐ कहने चाहिए। 87. [Q.] Bhante ! If three substances are prayoga parinat (consciously transformed), then are they transformed due to conscious activity of mind (manah-prayoga parinat), conscious activity of speech (vachanki prayoga parinat) or conscious activity of body (kaaya-prayoga parinat)? 41 ___[Ans.] Gautam ! They could be transformed either due to conscious ti activity of mind (manah-prayoga parinat), or conscious activity of speech (vachan-prayoga parinat) or conscious activity of body (kaaya-prayoga 46 parinat). In the same way alternatives with singularity, combinations of si two and three should be stated. ८८. [प्र. ] जइ मणप्पयोगपरिणया किं सच्चमणप्पयोगपरिणया ४ ? [उ.] गोयमा ! सच्चमणप्पयोगपरिणया वा जाव असच्चामोसमणप्पयोगपरिणया वा ४। अहवेगे सच्चमणप्पयोगपरिणए, दो मोसमणप्पयोगपरिणया एवं दुयसंयोगो, तियसंयोगो भाणियब्बो। एत्थ वि तहेव जाव अहवा एगे तंससंठाणपरिणए वा एगे चउरंससंठाणपरिणए वा एगे आययसंठाणपरिणए वा। ८८. [प्र. ] भगवन् ! यदि तीन द्रव्य मनःप्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या वे सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं ? (असत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं) इत्यादि प्रश्न हैं। [उ.] गौतम ! वे तीनों द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा यावत् असत्यामृषामनः - प्रयोगपरिणत होते हैं. अथवा उनमें से एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दो द्रव्य मषामनः । प्रयोगपरिणत होते हैं; इत्यादि प्रकार से यहाँ भी द्विकसंयोगी और त्रिक संयोगी भंग कहने चाहिए। 卐55454545555555555555555555555555555555555 | भगवती सूत्र (२) (530) Bhagavati Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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