Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 592
________________ 25 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555595555555559555552 卐 5 यावत् दस के संयोग से, बारह के संयोग से; जहाँ जिसके जितने संयोगी भंग बनते हों, उतने सब भंग उपयोगपूर्वक (अपनी बुद्धि से उपयोग लगाकर ) कहने चाहिए। ये सभी संयोगी भंग आगे नौवें शतक के बत्तीसवें प्रवेशनक नामक उद्देशक में जिस प्रकार हम कहेंगे, उसी प्रकार उपयोग लगाकर यहाँ भी 5 कहने चाहिए; यावत् अथवा अनन्त द्रव्य परिमण्डल - संस्थानरूप से परिणत होते हैं, यावत् अनन्त द्रव्य ! आयत - संस्थानरूप से परिणत होते हैं। 90. [Q.] Bhante ! If four substances are prayoga parinat (consciously transformed), then are they transformed due to conscious activity of 5 mind (manah-prayoga parinat), conscious activity of speech (vachan- ! prayoga parinat) or conscious activity of body (kaaya-prayoga parinat ) ? 4 [Ans.] Gautam ! All these should be derived following the aforesaid 卐 5 pattern. And this way the progression should be extended to five, six, y seven, eight, nine, ten... and so on up to ... countable, innumerable and y infinite substances. All possible alternatives for combinations of two, 卐 卐 卐 卐 卐 three... and so on up to... ten, twelve and so on should be derived using 卐 फ्रा one's own wisdom and application. All these alternatives should be stated here as will be stated in the thirty second lesson titled 5 Praveshanak of the ninth chapter... and so on up to ... infinite substances y 5 are transformed as spherical constitution... and so on up to ... infinite 4 substances are transformed as rectangular constitution. 卐 विवेचन : चार द्रव्यों सम्बन्धी भंग- चार द्रव्यों के प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत आदि तीन ५ 5 पदों के असंयोगी तीन भंग, द्विकसंयोगी नौ भंग और त्रिकसंयोगी तीन भंग होते हैं। इस तरह ये सभी मिलकर ५ ३ + ९ + ३ = १५ भंग होते हैं। पूर्वोक्त पद्धति के अनुसार इनसे आगे के भंगों के लिए पूर्वोक्त क्रम से ५ संस्थानपर्यन्त यथायोग्य भंगों की योजना कर लेनी चाहिए। 4 Y पाँच द्रव्यों के असंयोगी तीन भंग, द्विकसंयोगी बारह भंग और त्रिकसंयोगी छह भंग; यों कुल ३ + १२ + = २१ भंग होते हैं। इस प्रकार पाँच, छह, यावत् अनन्त द्रव्यों के भी यथायोग्य भंग बना लेने चाहिए। सूत्र ५ ६ 4 y मूल पाठ में ग्यारह संयोगी भंग नहीं बतलाया गया है; क्योंकि पूर्वोक्त पदों में ग्यारह संयोगी भंग नहीं बनते। नौवें शतक के बत्तीसवें उद्देशक में गांगेय अनगार के प्रवेशनक सम्बन्धी भंग बताए गये हैं, तदनुसार यहाँ ५ भी उपयोग लगाकर भंगों की योजना कर लेनी चाहिए। (वृत्ति, पत्रांक ३३९) Y 4 Elaboration-There are fifteen alternatives of the said three basic y categories including prayoga parinat (consciously transformed) for four y substances-three in singularity, nine as combinations of two and three as combination of three. Following the aforesaid pattern other progressive alternatives should be derived up to the sub-category of constitution. There are fifteen alternatives of the said three basic categories including prayoga parinat (consciously transformed) भगवती सूत्र ( २ ) Jain Education International (534) For Private & Personal Use Only Bhagavati Sutra (2) y 4 Y for four 4 4 Y Y www.jainelibrary.org

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