Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 560
________________ 卐5555555555))))))))))))))))) 54. [Q.] Bhante ! If a substance is transformed due to conscious activity of speech (vachan-prayoga parinat), then is it transformed due to truthful conscious activity of speech (satya vachan-prayoga parinat), untruthful conscious activity of speech (mrisha vachan-prayoga parinat), truthful-untruthful conscious activity of speech (satya-mrisha vachanprayoga parinat), or non-truthful-non-untruthful conscious activity of speech (asatya-amrisha vachan-prayoga parinat) ? ___ [Ans.] Gautam ! What has been said with regard to transformation due to conscious activity of mind (manah-prayoga parinat) should also be repeated with regard to transformation due to conscious activity of speech (vachan-prayoga parinat)... and so on up to... transformed due to untruthful non-tormenting conscious activity of speech (asamaarambh satya vachan-prayoga parinat). विवेचन : प्रयोग की परिभाषा-मन, वचन और काया के व्यापार को 'योग' कहते हैं अथवा वीर्यान्तरायकर्म के क्षय या क्षयोपशम से मनोवर्गणा, वचनवर्गणा और कायवर्गणा के पुद्गलों का आलम्बन लेकर आत्मप्रदेशों में होने वाले परिस्पन्दन (कम्पन या हलचल) को भी योग कहा जाता है, इसी योग को यहाँ 'प्रयोग' कहा गया है। प्रयोग-परिणत : तीनों योगों द्वारा-काययोग द्वारा मनोवर्गणा के द्रव्यों को ग्रहण करके मनोयोग द्वारा मनोरूप से परिणमाए हुए पुद्गल 'मनःप्रयोगोपरिणत' कहलाते हैं। काययोग द्वारा भाषाद्रव्य को ग्रहण करके वचनयोग द्वारा भाषारूप में परिणत करके बाहर निकाले जाने वाले पुद्गल 'वचन-प्रयोग-परिणत' कहलाते हैं। औदारिक आदि काययोग द्वारा ग्रहण किये हुए औदारिकादि वर्गणाद्रव्यों को औदारिकादि शरीररूप में परिणमाए हों, उन्हें 'कायप्रयोगपरिणत' कहते हैं। योगों के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप-आलम्बन के भेद से प्रयोग के तीन भेद हैं-मनोयोग, वचनयोग और काययोग। ये ही मुख्य तीन योग हैं। फिर इनके अवान्तर भेद क्रमशः ४ मनोयोग के, ४ वचनयोग के और ७ काययोग के हैं। आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ का स्वरूप-जीवों की हिंसा 'आरम्भ' है, हिंसा के लिए मानसिक संकल्प करना संरम्भ (सारम्भ) है। जीवों को परिताप पहुँचाना समारम्भ है। जीवहिंसा के अभाव को अनारम्भ कहते हैं। हिंसा में मनःप्रयोग द्वारा परिणत पुद्गल मनःप्रयोग-परिणत कहलाते हैं। इसी तरह सभी का स्वरूप समझना चाहिए। Elaboration Prayoga-Activities associated with mind, speech and body are called yoga. The vibration in the soul space-points (atmapradesh) taking effect due to association of karmic particles of mental category (manovargana), vocal category (vachan-vargana) and physical category (kaayavargana) triggered by destruct destruction-cum-pacification of Viryantaraya (potency hindering) karma is also called yoga. Here this latter activity is taken as prayoga. Transformation due to conscious activity through three associations (yoga)-The matter particles (pudgala) of the mental category भगवती सूत्र (२) (502) Bhagavati Sutra (2) 555555555555555555555555$$$$$$$$$$$$ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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