Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 535
________________ )))))))))555555 055555555555555555555555555555555555 १६. [१] वेमाणिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कप्पोवग० कप्पातीतगवेमाणिय० । १६. [१] वैमानिकदेव के दो प्रकार हैं। यथा-कल्पोपपन्नक वैमानिकदेव और कल्पातीत वैमानिकदेव। ___16. [1] There are two types of Vaimanik devs (celestial-vehicular gods)-Kalpopapannak Vaimanik devs (celestial-vehicular gods belonging to Kalps or specific divine realms) and Kalpateet Vaimanik devs (celestial-vehicular gods beyond the Kalps). [२ ] कप्पोवगा दुवालसविहा पण्णत्ता, तं जहा-सोहम्मकप्पोवग० जाव अच्चुयकप्पोवगवेमाणिया। [३] कप्पाइयगा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-गेवेज्जगकप्पातीयग० अणुत्तरोववाइयकप्पाईयग०। [४] गेवेज्जगकप्पातीतगा नवविहा पण्णत्ता, तं जहा-हेट्ठिमहेट्ठिम-गेवेज्जगकप्पातीतगा जाव के उवरिमउवरिम-गेविज्जगकप्पातीतया। [२] कल्पोपपन्नक वैमानिक देव बारह प्रकार के हैं। यथा-सौधर्म कल्पोपपन्नक से यावत् अच्युतकल्पोपपन्नक देव तक। (इन बारह प्रकार के वैमानिक देवों से सम्बन्धित प्रयोग-परिणत पुद्गल ॐ १२ प्रकार के होते हैं।) [३] कल्पातीत वैमानिकदेव दो प्रकार के कहे हैं। यथा-ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिकदेव और ॐ अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव। [४ ] ग्रैवेयक कल्पातीत वैमानिकदेवों के नौ प्रकार हैं। यथा-अधस्तन-अधस्तन (सबसे नीचे की ॐ त्रिक में नीचे का) ग्रैवेयक कल्पातीत वैमानिक देव यावत् उपरितन-उपरितन (सबसे ऊपर की त्रिक में सबसे ऊपर वाले ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिक-देव। [2] Kalpopapannak Vaimanik devs (celestial-vehicular gods belonging to Kalps or specific divine realms) are of twelve types-Saudharma Kalpopapannak (belonging to the Saudharma Kalp)... and so on up to Achyut Kalpopapannak (belonging to the Achyut Kalp) [3] Kalpateet Vaimanik devs (celestial-vehicular gods beyond the Kalps) are of two types—Graiveyak Kalpateet Vaimanik deus and Anuttaraupapatik Kalpateet Vaimanik devs. [4] Graiveyak Kalpateet Vaimanik devs are of nine types-Adhastanadhastan (lowest of the lower) Graiveyak Kalpateet Vaimanik devs... and so on up to... Uparitan-uparitan (highest of the higher) Graiveyak Kalpateet Vaimanik devs. [प्र. ५] अणुत्तरोववाइय-कप्पातीतगवेमाणियदेव-पंचिंदियपयोगपरिणया णं भंते ! पोग्गला कइविहा पण्णत्ता? 05555555555)))))))))))))))) अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक (477) Eighth Shatak : First Lesson क )))59555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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