Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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5 विप्परिणामियाई खिप्पामेव विद्वत्थाइं भवंति । जावइयं तावइयं पि णं ते वेयणं वेएमाणा महानिज्जरा
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एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबायराई कम्माई सिढिलीकयाइं निट्ठियाई कडाई फ्र
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[उ. ] गौतम ! जैसे दो वस्त्र हैं। उनमें से एक कर्दम (कीचड़ ) के रंग से रंगा हुआ है और दूसरा वस्त्र खंजन (गाड़ी के पहिये के कीट) के रंग से रंगा हुआ है। गौतम ! इन दोनों वस्त्रों में से कौन-सा वस्त्र
5 दुधततर (कठिनाई से धुलने योग्य), दुर्वाम्यतर (कठिनाई से उतारे जा सकें, ऐसा ) है और कौन-सा वस्त्र तर (जो सरलता से धोया जा सके), सुवाम्यतर ( आसानी से जिसके दाग उतारे जा सकें), तथा सुपरिकर्मतर (जिस पर चमक लाना और चित्रादि बनाना सरल है; कर्दमरागरक्त या खंजनरागरक्त ? (गौतम) भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में से जो कर्दम-रंग से रंगा हुआ है, वही (वस्त्र) दुर्धीततर, दुर्वाम्यतर एवं दुष्परिकर्मतर है ।
महापज्जवसाणा भवंति ।
से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जायतेयंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं गोयमा ! से सुक्के
तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जति ?
हंता, मसमसाविज्जति ।
एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं अहाबादराई कम्माई, जाव महापज्जवसाणा भवंति ।
से जहानामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदगबिंदू जाव हंता, विद्धंसमागच्छति । एवामेव गोयमा ! समणाणं निग्गंथाणं जाव महापज्जवसाणा भवंति ।
से तेणट्टेणं जे महावेदणे से महानिज्जरे जाव निज्जराए ।
४. [ प्र. ] भगवन् ! तब यह कैसे कहा जाता है कि जो महावेदना वाला है, वह महानिर्जरा वाला है, यावत् प्रशस्त निर्जरा वाला है?
(भगवान) गौतम ! इसी तरह नैरयिकों के पाप कर्म गाढीकृत (गाढ बँधे हुए), चिक्कणीकृत ( चिकने किये हुए), श्लिष्ट (निधत्त किये हुए) एवं खिलीभूत (निकाचित किये हुए) हैं, इसलिए वे सम्प्रगाढ वेदना
को वेदते हुए भी महानिर्जरा वाले तथा महापर्यवसान वाले नहीं हैं।
अथवा जैसे कोई व्यक्ति प्रचण्ड शब्द के साथ महाघोष (ध्वनि) करता हुआ लगातार जोर-जोर से
चोट मारकर एरण (अहरन) को (हथौड़े से) कूटता - पीटता हुआ भी उस एरण के स्थूल पुद्गलों को
विनष्ट करने में समर्थ नहीं हो सकता; इसी प्रकार हे गौतम! नैरयिकों के पापकर्म गाढ़ किये हुए हैं,
यावत् इसलिए वे महानिर्जरा एवं महापर्यवसान वाले नहीं हैं।
( गौतम स्वामी ने पूछा ) 'भगवन् ! उन दोनों वस्त्रों में से जो खंजन के रंग से रंगा हुआ है, वह वस्त्र सुधौततर, सुवाम्यतर और सुपरिकर्मतर है ?'
(भगवान ने कहा-) हाँ, गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रन्थों के यथाबादर (स्थूलतर कर्म पुद्गल, असार पुद्गल) कर्म, शिथिलीकृत ( मन्द विपाक वाले), निष्ठितकृत (निःसत्व किये हुए), विपरिणामित
छठा शतक : प्रथम उद्देशक
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