Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 292
________________ ))) 卐55555555555555555555)))))))))))))) 4555555555555555555555555555555555555 # जलंताओ एकपदेसियाए सेढीए इत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए। सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उप्पतित्ता फ़ तओ पच्छा तिरियं पवित्थरमाणे पवित्थरमाणे सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंदे चत्तारि वि कप्पे आवरित्ता के म णं उड्ढं पि य णं जाव बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाणपत्थडं संपत्ते, एत्थ णं तमुक्काए सनिट्ठिए। ॐ २. [प्र. ] भगवन् ! तमस्काय कहाँ से समुत्थित (उत्पन्न-प्रारम्भ) होती है और कहाँ जाकर सनिष्ठित (समाप्त) होती है? फ़ [उ. ] गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के बाहर तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अरुणवर द्वीप आता है, उस द्वीप की बाहरी वेदिका के अन्त से अरुणोदय समुद्र में ४२,००० योजन जाने पर वहाँ जल के ऊपर के सिरे से एक प्रदेश की श्रेणी में तमस्काय उठती है। (अर्थात् नीचे से 卐 लेकर ऊपर उठती एक समान दीवार रूप है।) वहाँ से १,७२१ योजन ऊँची जाने के बाद तिरछी विस्तृत होती हुई, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र, इन चार देवलोकों (कल्पों) को आच्छादित करके उनसे भी ऊपर पंचम ब्रह्मलोककल्प के रिष्टविमान नामक पाथडे तक पहँच जाती है। यहीं 卐 तमस्काय समाप्त होती है। 2. (Q.) Bhante ! Where does Tamaskaaya (agglomerative entit darkness) begin (samutthit) and where does it end ? (Ans.) Gautam ! Outside the Jambudveep continent after obliquely crossing innumerable pairs of island-seas (dveep-samudra) one reaches Arunavar continent. At the end of its outer vedika (plateau) is Arunavar 5 sea. Crossing 42 thousand Yojans (a linear measure approximately equal 4 to 8 miles) in that sea comes a point on the water surface from where Tamaskaaya (agglomerative entity of darkness) rises into space as a + matrix (shreni) of single space-point dimension (depth). Going perpendicular for 1721 Yojans it turns and extends to envelope four divine dimensions (heavens), namely Saudharma, Ishan, Sanatkumar and Maahendra kalps, and goes up to Risht Vimaan of the fifth Brahmalok kalp. This is the point where Tamaskaaya ends. ३. [प्र. ] तमुक्काए णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! अहे मल्लगमूलसंठिए, उप्पिं कुक्कुडगपंजरगसंठिए पण्णत्ते। ___३. [प्र. ] भगवन् ! तमस्काय का संस्थान (आकार) किस प्रकार का है ? [उ. ] गौतम ! तमस्काय नीचे तो मल्लक (शराब या सिकोरे) के मूल के आकार का है और ऊपर ॐ कुक्कुपंजरक अर्थात् मुर्गे के पिंजरे के आकार का है। 3.[Q.] Bhante ! What is the shape of Tamaskaaya ? [Ans.] Gautam ! At the base it is of the shape of the base of a mallak (earthen pot of the shape of a conical tumbler) and at the top it is like cage of a cock (square shaped) B5555555555555555555555555555555555555555555555553 | भगवती सूत्र (२) (252) Bhagavati Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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