Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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विवेचन : यहाँ क्रेता-विक्रेता के सम्बन्ध में छह विकल्पों से प्रश्न पूछे गये हैं। इन सूत्रों का सारांश इस प्रकार समझना चाहिए
(१) किराना बेचने वाले का किराना (माल) कोई चुरा ले जाये तो उस किराने को खोजने में विक्रेता को आरम्भिकी आदि ४ क्रियाएँ लगती हैं। (२) यदि चुराया हुआ किराने का माल वापस मिल जाये तो विक्रेता को ये सब क्रियाएँ मन्द रूप में लगती हैं। (३) खरीददार ने विक्रेता से किराना (माल) खरीद लिया, उस सौदे को पक्का करने के लिए साई भी दे दी. किन्त माल दकान से उठाया नहीं. तब तक खरीददार को उस किरानेसम्बन्धी क्रियाएँ हल्के रूप में लगती हैं, जबकि विक्रेता को वे क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं। (४) विक्रेता द्वारा किराना खरीददार को सौंप दिये जाने पर वह उसे उठाकर ले जाता है, ऐसी स्थिति में विक्रेता को वे सब सम्भावित क्रियाएँ हल्के रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को भारी रूप में। (५) विक्रेता से खरीददार ने किराना खरीद लिया, किन्तु उसका मूल्यरूप धन विक्रेता को नहीं दिया, ऐसी स्थिति में विक्रेता को आरम्भिकी
आदि चारों क्रियाएँ हल्के रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को वे ही क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं। और (६) किराने का मूल्यरूप धन खरीददार द्वारा चुका देने के बाद विक्रेता को धन-सम्बन्धी चारों सम्भावित क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं, जबकि खरीददार को वे सब सम्भावित क्रियाएँ प्रतनु-अल्प रूप में लगती हैं।
हल्के रूप में और भारी रूप में क्यों? (१) इसका समाधान है-चुराये हुए माल की खोज करते समय विक्रेता (व्यापारी) विशेष प्रयत्नशील होता है, इसलिए उसे सम्भावित क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं, किन्तु जब व्यापारी को चुराया हुआ माल मिल जाता है, तब उसका खोज करने का प्रयत्न बन्द हो जाता है, इसलिए वे सब सम्भावित क्रियाएँ हल्की हो जाती हैं। (२) विक्रेता के यहाँ खरीददार के द्वारा खरीदा हुआ माल पड़ा रहता है, वह उसका होने से तत्सम्बन्धित क्रियाएँ भारी रूप में लगती हैं, किन्तु खरीददार उस माल को उठाकर अपने घर ले जाता है, तब खरीददार को वे सब क्रियाएँ भारी रूप में और विक्रेता को हल्के रूप में लगती हैं। (३) किराने का मूल्य रूप धन जब तक खरीददार द्वारा विक्रेता को नहीं दिया गया है, तब तक वह धन खरीददार का है, अतः उससे सम्बन्धित क्रियाएँ खरीददार को भारी रूप में और विक्रेता को हल्के रूप में लगती हैं, किन्तु खरीददार खरीदे हुए किराने का मूल्य रूप धन विक्रेता को चुका देता है, उस स्थिति में विक्रेता को उस धन-सम्बन्धी क्रियाएँ भारी रूप में, तथा खरीददार को हल्के रूप में लगती हैं।
निष्कर्ष यह है कि वस्तु और धन जिसके अधिकार में होते हैं, उसको क्रिया ‘सघन' लगती है, जिसके अधिकार में नहीं होते, उसको क्रिया प्रतनु होती है।
Elaboration-Six alternative questions have been asked here about buyer and seller. The gist of these aphorisms is as follows
(1) If a merchandise of a seller is stolen and he starts searching then he is liable of involvement in four activities including arambhiki kriya (here kriya or activity means act and consequence in terms of karmic bondage). (2) If the stolen goods are recovered the seller is liable of involvement in all these activities to a very mild degree. (3) A buyer has purchased goods and paid some advance but has not taken the delivery; in such case the buyer is liable to mild involvement and the seller is liable to greater involvement in activities related to the goods. (4) After
पंचम शतक : छठा उद्देशक
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Fifth Shatak : Sixth Lesson
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