Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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पंचम शतक :पंचम उद्देशक FIFTH SHATAK (Chapter Five) : FIFTH LESSON
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छद्मस्थ CHHADMASTH (THE UNRIGHTEOUS) क्या छद्मस्थ सिद्ध हो सकता है ? CAN CHHADMASTH BE SIDDHA ?
१. [प्र. ] छउमत्थे णं भंते ! मणूसे तीयमणंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं"सिमिंसु ? [उ. ] जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयवं जाव 'अलमत्थु' त्ति वत्तव्वं सिया।
१. [प्र. ] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य शाश्वत, अनन्त, अतीतकाल (भूतकाल) में केवल संयम ॐ के द्वारा सिद्ध हुआ है ? 3 [उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहा है, वैसा ही आलापक यहाँ भी के कहना चाहिए; (और वह) यावत् ‘अलमस्तु' कहा जा सकता है; यहाँ तक कहना चाहिए।
1. [Q.] Bhante ! Has a person with finite cognition (chhadmasth) 4 become Siddha in the eternal limitless past only through asceticdiscipline (samyam)?
[Ans.] Gautam ! As has been stated in the fourth lesson of the first 1 chapter should be repeated here... and so on up to... perfect (almastu).
विवेचन-प्रथम शतक के चतुर्थ उद्देशक, सूत्र १५९-१६३ में कहा गया कि केवलज्ञानी हुए बिना कोई भी व्यक्ति सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सर्वदुःखान्तकर, परिनिर्वाण प्राप्त, उत्पन्न ज्ञान-दर्शनधर, जिन, अर्हत् केवली और 卐 'अलमस्तु' नहीं हो सकता।
Elaboration-In aphorisms 159-163 of the fourth lesson of the first 1 chapter it has been mentioned that without hecoming omniscient no 'i person can become perfected (Siddha), enlightened (buddha), liberated 46 (mukta), end all miseries, and attain nirvana or get endowed with right
knowledge and perception to become Arhant, Jina, or Kevali (omniscient) and perfect (almastu). एवम्भूत-अनेवम्भूतवेदना EVAMBHOOT-ANEVAMBHOOT PAIN
२. [प्र. १] अन्नउत्थिया णं भंते ! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति सव्वे पाणा सव्वे भूया सब्चे जीवा म सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेति, से कहमेयं भंते ! एवं ? 卐 [उ. ] गोयमा ! ज णं अनउत्थिया एवमाइक्खंति जाव वेदेति, जे ते एवमाहंसु मिच्छा ते एवमाहंसु।
अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेति, + अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अणेवंभूयं वेदणं वेदेति।
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| भगवती सूत्र (२)
(74)
Bhagavati Sutra (2)
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