Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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२. [प्र. १ ] भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत-(जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते (भोगते = अनुभव करते) हैं, भगवन् ! यह ऐसा कैसे है ?
[उ. ] गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत् प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना वेदते हैं, उन्होंने यह मिथ्या कथन किया है। हे गौतम ! मैं यों कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ कि कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं और कितने ही प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, अनेवंभूत-(जिस प्रकार से कर्म बाँधा है, उससे भिन्न प्रकार से) वेदना वेदते हैं।
2. [Q. 1] Bhante ! People of other faiths (anyatirthik) or heretics say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) that all praan (two to four sensed beings; beings), bhoot (plant bodied beings; organisms), jiva (five sensed beings; souls), and sattva (immobile beings%3; entities) suffer evambhoot (according to acquired karmas) pain. Bhante ! How is it so?
(Ans.) Gautam ! What the people of other faiths (anyatirthik) or heretics say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) that all praan (two to four sensed beings), bhoot (plant bodied beings), jiva (five sensed beings), and sattva (immobile beings) suffer pain according to acquired karmas (evambhoot), is all incorrect. O Gautam ! What I say (akhyanti)... and so on up to... propagate (prarupayanti) is that some praan, bhoot, jiva, and sattva suffer evambhoot (according to acquired karmas) pain and some praan, bhoot, jiva, and sattva suffer anevambhoot (not according to acquired karmas).
[प्र. २ ] से केणठेणं अत्थेगइया० तं चेव उच्चारेयव्वं ?
[उ. ] गोयमा ! जे णं पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा कम्मा तहा वेदणं वेदेति ते णं पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदणं वेदेति। जे णं पाणा भूया जीवा सत्ता जहा कडा कम्मा नो तहा वेदणं वेदेति ते णं पाणा भूया जीवा सत्ता अणेवंभूयं वेदणं वेदेति । से तेणठेणं० तहेव। __[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है, कि कितने ही प्राण, भूत आदि एवंभूत और कितने ही अनेवंभूत वेदना वेदते हैं ?
[उ. ] गौतम ! जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, जिस प्रकार स्वयं ने कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना वेदते (उसी प्रकार उदय में आने पर भोगते अनुभव करते) हैं, वे प्राण, भूत, जीव और सत्त्व, एवंभूत वेदना वेदते हैं किन्तु जो प्राण, भूत, जीव और सत्त्व जिस प्रकार कर्म किये हैं, उसी प्रकार वेदना नहीं वेदते (भिन्न प्रकार से वेदन करते हैं। वे प्राण, भूत, जीव और स्त्व) अनेवंभूत वेदना वेदते
पंचम शतक : पंचम उद्देशक
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Fifth Shatak: Fifth Lesson
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