Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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दो देवों के मनोगत प्रश्न SILENT QUESTIONS BY TWO GODS
१८. [ १ ] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ महासामाणाओ विमाणाओ दो देवा या व महाभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूआ ।
१८. [ १ ] उस काल और उस समय में महाशुक्रकल्प से महासामान नामक महाविमान से दो महर्द्धिक यावत् महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास उपस्थित हुए।
18. [1] During that period of time two gods, with great opulence... and so on up to... fortune, from Mahasaaman celestial vehicle in Mahashukra Kalp came to Shraman Bhagavan Mahavir.
[२] तए णं देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति, नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता मणसा चेव इमं एयारूवं
वागरणं पुच्छंति
[प्र. ] कइ णं भंते ! देवाणुप्पियाणं अंतेवासिसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति ?
[उ.] तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मणसा पुट्ठे, तेसिं देवाणं मणसा चेव इमं एतारूवं वागरणं वागरेति - एवं खलु देवाणुप्पिया ! मम सत्त अंतेवासिसयाई सिज्झिर्हिति जाव अंतं करेर्हिति ।
[ २ ] तत्पश्चात् उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन - नमस्कार करके उन्होंने मन से ही ( मन ही मन ) ( श्रमण भगवान महावीर से) ऐसा प्रश्न पूछा
[प्र. ] 'भगवन् ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ?'
तत्पश्चात् उन देवों द्वारा मन से पूछे जाने पर श्रमण भगवान महावीर ने उन देवों को भी मन से इस प्रकार का उत्तर दिया
[ उ. ] 'हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत् सब दुःखों का अन्त करेंगे।'
[2] After that those gods paid homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir and asked in their mind (silently) this question (to Shraman Bhagavan Mahavir)
[Q] Bhante! How many hundred of your disciples will become Siddhas... and so on up to ... end all miseries ?
After that Shraman Bhagavan Mahavir replied in his mind (silently) the question asked by the gods in their mind (silently).
[Ans.] O beloved of gods! Seven hundred of my disciples will become Siddhas... and so on up to ... end all miseries.
[ ३ ] तए णं ते देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मणसा पुट्टेणं मणसा चेव इमं एयारूवं वागरणं वारिया समाणा तुट्ठा जाव हयहियया समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, णमंसित्ता मणसा चेव सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा जाव पज्जुवासंति ।
भगवती
सूत्र (२)
(54)
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Bhagavati Sutra (2)
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