Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चतुःसंयोगी २० भंग ५००, पंचसंयोगी १५ भंग ५००, षट्संयोगी ६ भंग ५०१, सप्तसंयोगी १ भंग ५०१, रत्नप्रभादि नैरयिकों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०१, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक : प्रकार और भंग ५०१, उत्कृष्ट तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक प्ररूपणा ५०३, द्विकसंयोगी से पंचसंयोगी तक भंग ५०३,एकेन्द्रियादि तिर्यञ्चप्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०३, मनुष्य-प्रवेशनक : प्रकार और भंग ५०४, उत्कृष्ट रूप से मनुष्यप्रवेशनक-प्ररूपणा ५०६, मनुष्य-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०६, देव-प्रवेशनक : प्रकार और भंग ५०६, उत्कृष्टरूप से देव-प्रवेशनक-प्ररूपणा ५०८, भवनवासी आदि देवों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०८, नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देव-प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०९, नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देव प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०९, चारों गतियों के जीवों के प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व ५०९, चौबीस दण्डकों में सान्तरनिरन्तर उपपाद-उद्ववर्तनप्ररूपणा ५०९, प्रकारान्तर से चौबीस दण्डकों में उत्पाद-उद्वर्तना-प्ररूपणा ५११, सत् ही उत्पन्न होने आदि का रहस्य ५१२, सत् में ही उत्पन्न होने आदि का रहस्य ५१२, केवलज्ञानी आत्मप्रत्यक्ष से सब जानते हैं ५१३, केवलज्ञानी द्वारा समस्त स्व-प्रत्यक्ष ५१३, नैरयिक आदि की स्वयं उत्पत्ति ५१४, नैरयिकों आदि की स्वयं उत्पत्ति-रहस्य और कारण ५१४. जीवों की नारक. देव आदि रूप में स्वयं उत्पत्ति के कारण ५१६, भगवान् के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहाव्रत धर्म-स्वीकार ५१६। तेतीसवाँ उद्देशक-कुण्डग्राम (सूत्र १-११२)
__५१८-५८८ ऋषभदत्त और देवानन्दा : संक्षिप्त परिचय ५१८, ऋषभदत्त ब्राह्मणधर्मानुयायी था या श्रमणधर्मानुयायी ? ५१९, भगवान् की सेवा में वन्दना-पर्युपासनादि के लिए जाने का निश्चय ५१९, ब्राह्मणदम्पती की दर्शनवन्दनार्थ जाने की तैयारी ५२०, पांच अभिगम क्या और क्यों ? ५२३, देवानन्दा की मातृवत्सलता और गौतम का समाधान ५२४. ऋषभदत्त द्वारा प्रव्रज्याग्रहण एवं निर्वाण-प्राप्ति ५२५. देवानन्दा द्वारा साध्वी-दीक्षा और मुक्ति-प्राप्ति ५२७, (जमालि-चरति) जमालि और उसका भोग-वैभवमय जीवन ५२८, भगवान् का पदार्पण सुनकर दर्शन-वन्दनादि के लिए गमन ५२९, जमालि द्वारा प्रवचन-श्रवण और श्रद्धा तथा प्रव्रज्या की अभिव्यक्ति ५३३, माता-पिता से दीक्षा की अनुज्ञा का अनुरोध ५३४, प्रव्रज्या का संकल्प सुनते ही माता शोकमग्न ५३६, माता-पिता के साथ विरक्त जमाली का संलाप ५३७, जमालि को प्रव्रज्याग्रहण की अनुमति दी ५४८, जमालि के प्रव्रज्या-ग्रहण का विस्तृत वर्णन ५४८, भगवान् की बिना आज्ञा के जमालि का पृथक विहार ५६६, जमालि अनगार का श्रावस्ती में और भगवान् का चंपा में विहरण ५६७, जमालि अनगार के शरीर में रोगातंक की उत्पत्ति ५६८, रुग्ण जमालि को शय्यासंस्तारक के निमित्त से सिद्धान्त-विरूद्ध-स्फुरणा और प्ररूपणा ५६९, कुछ श्रमणों द्वारा जमालि के सिद्धान्त का स्वीकार, कुछ के द्वारा अस्वीकार ५७१, जमालि द्वारा सर्वज्ञता का मिथ्या दावा ५७२, गौतम के दो प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ जमालि का भगवान् द्वारा सैद्धान्तिक समाधान ५७३, मिथ्यात्वग्रस्त जमालि की विराधकता का फल ५७५, किल्विषिक देवों में उत्पत्ति का भगवत्समाधान ५७६, किल्विषिक देवों के भेद, स्थान एवं उत्पत्ति-कारण ५७७, किल्विषिक देवों में जमालि की उत्पत्ति का कारण ५७९. स्वादजयी अनगार किल्विषिक देव क्यों ?५८०. जमालिका भविष्य ५८०। चौतीसवाँ उद्देशक-पुरुष (सूत्र १-२५) ।
५८२-५८८ पुरुष के द्वारा अश्वादिघात सम्बन्धी प्रश्नोत्तर ५८२, प्राणिघात के सम्बंध में सापेक्ष सिद्धान्त ५८४,
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