Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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स्थान ही क्यों ? ४५३, उक्त अवधिज्ञानी को केवलज्ञान-प्राप्ति का क्रम ४५३, चारित्रात्मा अवधिज्ञानी के प्रशस्त अध्यवसायों का प्रभाव ४५४, मोहनीयकर्म का नाश, शेष घातिकर्मनाश का कारण ४५४, केवलज्ञान के विशेषणों का भावार्थ ४५५, असोच्चा केवलीद्वारा उपदेश-प्रवज्या-सिद्धी आदि के सम्बन्ध में ४५५, असोच्चा
वली का आचार-विचार, उपलब्धि एवं स्थान ४५६, सोच्चा से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर ४५७, 'असोच्चा' का अतिदेश ४५८, केवली आदि से सुन कर अवधिज्ञान की उपलब्धि ४५८, केवली आदि से सुन कर सम्यग्दर्शनादि प्राप्त जीव को अवधिज्ञान-प्राप्ति की प्रक्रिया ४५८, तथारूप अवधिज्ञानी में लेश्या, योग, देह आदि ४५९, सोच्चा केवली द्वारा उपदेश, प्रव्रज्या, सिद्धि आदि के सम्बंध में ४६१, सोच्चा अवधिज्ञानी के लेश्या आदि का निरूपण ४६३, असोच्चा से सोच्चा अवधिज्ञानी की कई बातों में अन्तर ४६३ ।
बत्तीसवाँ उद्देशक- गांगेय (सूत्र १ - ५९ )
४६४-५९६
उपोद्घात ४६४, चौवीस दण्डकों में सान्तर - निरन्तर - उपपात - उद्वर्तन-प्ररूपणा ४६४, उपपातउद्वर्तन : परिभाषा ४६६, सान्तर और निरन्तर ४६६, एकेन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति और मृत्यु ४६६, प्रवेशनक : चार प्रकार ४६६, नैरयिक-प्रवेशनक निरूपण ४६७, नैरयिक- प्रवेशनक सात ही क्यों ? ४६७, एक नैरयिक के प्रवेशनक - भंग ४६७, एक नैरयिक के असंयोगी सात प्रवेशनक-भंग ४६८, दो नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग ४६८, तीन नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग ४६९, चार नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग ४७७, चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग ४७८, पंच नैरयिकों के प्रवेशनकभंग ४७८, पंच नैरयिकों के द्विकसंयोगी भंग ४७९, पांच नैरयिकों के त्रिसंयोगी भंग ४७९, पंच नैरयिकों के चतुः संयोगी भंग ४७९, पंच नैरयिकों के पंच संयोगी भंग ४७९, पांच नैरयिकों के समस्त भंग, छह नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ४८४, एक संयोगी ७ भंग ४८६ द्विकसंयोगी १०५ भंग ४८६, त्रिकसंयोगी ३५० भंग ४८६, चतु:संयोगी ३५० भंग ४८७, पंचसंयोगी १०५ भंग ४८७, षट्संयोगी ७ भंग ४८७, सात नैरयिकों के प्रवेशनक-भंग ४८८, सात नैरयिकों के असंयोगी ७ भंग ४८८, द्विकसंयोगी १२६ भंग ४८८, त्रिकसंयोगी ५२५ भंग ४८८, चतुः संयोगी ७०० भंग ४८९, पंचसंयोगी ३१५ भंग ४८९, षट्संयोगी ४२ भंग ४८९, सप्तसंयोगी एक भंग ४८९, आठ नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ४८९, द्विकसंयोगी १४७ भंग ४९०, त्रिकसंयोगी ७३५ भंग ४९०, चतुः संयोगी १२२५ भंग ४९०, पंचसंयोगी ७३५ भंग ४९०, षट्संयोगी १४७ भंग ४९०, सप्तसंयोगी ७ भग ४९१, नौ नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ४९१, नैरयिकों के असंयोगी भंग ४९१, द्विकसंयोगी १६८ भंग ४९१, त्रिकसंयोगी ९८० भंग ४८४, चतुष्कसंयोगी १९६० भंग ४९२, पंचसंयोगी १४७० भंग ४९२, षट्संयोगी ३९२ भंग ४९२, सप्तसंयोगी २८ भंग ४९२, दस नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ४९२, दस नैरयिकों के असंयोगी भंग ४९३, द्विकसंयोगी १८९ भंग ४९३, त्रिकसंयोगी १२६० भंग ४९३, चतुः संयोगी २९४० भंग ४९३, पंचसंयोगी २६४६ भंग ४९३, षट्संयोगी ८८२. भंग ४९३ सप्तसंयोगी ८४ भंग ४९३, संख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग ४९४, संख्यात का स्वरूप ४९६, असंयोगी ७ भंग ४९६, द्विकसंयोगी २३१ भंग ४९६, त्रिकसंयोगी ७३५ भंग ४९७, चतुः संयोगी १०८५ भंग ४९७, पंचसंयोगी ८६१ भंग ४९७, षट्संयोगी ३५७ भंग ४९७, सप्तसंयोगी ६१ भंग ४९८, असंख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग ४९८, उत्कृष्ट नैरयिक- प्रवेशनक प्ररूपणा ४९८, षट्संयोगी ६ भंग ५००, उत्कृष्ट पद में नैरयिकप्रवेशनक-भंग ५००, द्विकसंयोगी ६ भंग ५००, त्रिकसंयोगी १५ भंग ५००,
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