Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अन्दर-बाहर के ज्योतिष्क देवों और इन्द्रों का उपपात-विरहकाल ३५८ । नवम उद्देशक-बंध (सूत्र १-१२९)
३६०-४०४ बंध के दो प्रकार : प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध ३६०, विस्रसाबंध के भेद-प्रभेद और स्वरूप ३६०, त्रिविध-अनादि विस्रसाबंध का स्वरूप ३६२, त्रिविध-सादि विस्रसाबंध का स्वरूप ३६३, अमोघ शब्द का अर्थ ३६३, बन्धन-प्रत्यनिक बंध का नियम ३६३, प्रयोगबंध : प्रकार, भेद-प्रभेद तथा उनका स्वरूप ३६४, प्रयोगबन्धः स्वरूप और जीवों की दृष्टि से प्रकार ३६८, शरीरप्रयोगबंध के प्रकार एवं औदारिकशरीर प्रयोगबंध के सम्बंध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण ३६८, औदारिक-शरीर-प्रयोगबंध के आठ कारण ३७५, औदारिकशरीर-प्रयोगबंध के दो रूप: सर्वबन्ध, देशबंध ३७६, उत्कृष्ट देशबंध ३७६, क्षुल्लक भवग्रहण का आशय ३७६, औदारिकशरीर के सर्बबंध और देशबंध का अन्तर-काल ३७६, औदारिकशरीर के देशबन्ध का अन्तर ३७७, प्रकारान्तर से औदारिकशरीरबंध का अन्तर ३७७, पुद्गलपरावर्तन आदि की व्याख्या ३७८, औदारिकशरीर के बन्धकों का अल्पबहुत्व ३७८, वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध के भेद-प्रभेद एवं विभिन्न पहलुओं से तत्सम्बन्धित विचारणा ३७८, वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध के नौ कारण ३८६ वैक्रियशरीरप्रयोगबंध के रहने की कालसीमा ३८६, वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर ३८६, वैक्रियशरीर के देश-सर्वबन्धकों का अल्पबहुत्व ३८७, आहारकशरीरप्रयोगबंध का विभिन्न पहलुओं से निरूपण ३८७, आहारक शरीरप्रयोगबं ३८९, आहारकशरीप्रयोगबंध की कालावधि ३८९, आहारकशरीर प्रयोग-बंध का अन्तर ३८९, आहारकशरीरप्रयोगबंध के देश-सर्वबन्धकों को अल्पबहुत्व ३८९, तैजसशरीरप्रयोगबंध के सम्बंध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण ३९०, तैजसशरीरप्रयोगबंध का स्वरूप ३९१, कार्मणशरीरप्रयोगबंध का भेद-प्रभेदों की अपेक्षा विभिन्न दृष्टियों से निरूपण ३९२, कार्मणशरीरप्रयोगबंध : स्वरूप, भेद-प्रभेदादि एवं कारण ३९७, ज्ञानावरणीय और दर्शनावरणीय कर्मबंध के कारण ३९७, ज्ञानावरणीयादि अष्ट-कार्मणशरीर-प्रयोगबंध देशबंध होता है, सर्वबंध नहीं ३९७, आयुकर्म के देशबन्धक ३९७, कठिन शब्दों की व्याख्या ३९८, पांच शरीरों के एक दूसरे के साथ बन्धक-अबन्धक की चर्चा विचारणा ३९८, पांच शरीरों में परस्पर बंधक-अबंधक कैसे ? ४००, औदारिक आदि पांच शरीरों के देश-सर्वबन्धकों एवम् पांच शरीरों के परस्पर बंधक अबंधक ४०२, तैजस कायण शरीर. का देश बंधक अबन्धकों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा ४०३, अल्पबहुत्व का कारण ४०४। दशम उद्देशक-आराधना (सूत्र १-६१)
४०५-४२६ श्रुत और शील की आराधना-विराधना की दृष्टि से भगवान् द्वारा अन्यतीर्थिंकमत-निराकरणपूर्वक द्रान्तनिरूपण ४०५, अन्यतीर्थिंकों का श्रुत-शीलसम्बन्धी मत मिथ्या क्यों ? ४०६, श्रुत-शील की चतुर्भंगी का आशय ४०७, ज्ञान-दर्शन-चारित्र की आराधना, इनका परस्पर सम्बंध एवं इनकी उत्कृष्टमध्यम-जघन्याराधना का फल ४०८, आराधना : परिभाषा, प्रकार और स्वरूप ४११, आराधना के पूर्वोक्त प्रकारों का परस्पर सम्बन्ध ४१२, रत्नत्रय की त्रिविध आराधनाओं का उत्कृष्ट फल ४१२, पुद्गल-परिणाम के भेद-प्रभेदों का निरूपण ४१२, पुद्गलपरिणाम की व्याख्या ४१३, पुद्गलास्तिकाय के एक देश से लेकर अनन्त प्रदेश तक अष्टविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर ४१३, किसमें कितने भंग ? ४१५, लोकाकाश के और प्रत्येक जीव के प्रदेश ४१५. लोकाकाशप्रदेश और जीवप्रदेश की तल्यता ४१६. आठ कर्मप्रकतियाँ उनके अविभागपरिच्छेद और आवेष्टित-परिवेष्टित समस्त संसारी जीव ४१६, अविभाग-परिच्छेद की व्याख्या ४१८, आवेष्टित
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