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भगवाननुं रूप जोई आपली सिद्ध दशा प्रगट करवानी बुद्धि जागवानो देतु बे; वली गुणवंतना गुण गातां आपलो श्रात्मा पल गुणी आय ने अनादीनी जुलथी परवस्तु पोतानी मानी वर्ते बें ते जाव पलटाववानुं साधन बे; माटे सिद्ध महाराजनो विनय पण जेटलो बनी शके एटलो करवो. ए बनेनो विनय करवो ते देवनो विनय जावो. हवे आ क्षेत्रमां अरिहंत सिद्ध महाराज कोई पण विचरता नथी, तो तेमनी मूर्तिनंनो पण विनय करवो. कारण जे गुणवंत पुरुषोनी मूर्त्तिमां पण जे जे भगवाननी मूसिबे ते ते जगवानना गुरानो आरोप करवो बे, ने ते गुणनो विनय करवो बे, एटले भगवंतनोज विनय बे. हवे तेमां प्रथम शो विनय बे ? के ते पुरुषोए जे जे हुकम फरमाव्या बेते ते हुकम अंगीकार करीने पोतानो आत्मा शुद्ध करवाना उद्यमी अबुं अने उद्यम करवाथी आत्मा शुद्ध थशे. जे जे अंशे प्रभुजीना हुकम प्रमाणे समन्नावमां रहीशुं ए मुख्य विनय बे. पबी तेना कार रूप पांच प्रकारे विनय बे "नक्तिबादाज प्रणीपतीथी " एटले पंचांग प्रणाम करवा जे खमासमणुं देईने पांचे अंग एकां करी नमस्कार जगवंतने वा जगवंतनी मूर्त्तिने करवा. वली अष्ट - व्यथी, सत्तर व्यथी, एकवीश झयश्री, वा १०८ श्री जगवंतने पूजवा ते पण जगवंतनो विनय बे. “रुदय प्रेम बहुमान " हृदयमां जगवंतना गुण जगवंतनो उपकार अत्यंत विचारी दरखथी रोमराय विकस्वर थई जाय. आणंदनो पार रहे नहि. एवो अंतरमां दरख थाय, अने प्रभु नपर प्रतिशय प्रीति जागे. ते मज प्रभुनो परूपेलो जे धर्म जे श्रागममां कह्यो बे ते श्रागम सांजली हो प्रजुए शो मार्ग बताव्यो बे ते विचारीने हरख याय. वली प्रजुनां चरित्र सांगली प्रभुजीनी वर्तना जोई श्रदो आश्चर्यकारी जगवंतनुं वर्त्ततुं बे ते जोई हरख थाय अने प्रजुना