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नथ ते तेवा स्थलोए देवव्यना लेहेणानो निकाल आावी जाय पण एवो रीवाज सरवे देवा शरी सर्वे सेहेरमां तथा सर्व माममां थाय तो जैन कोम सुखी थवानुं साधन ठे वली कोइ माणसे देवालुं काढयुं नथी पोतानी रीतमां ने पण पैसा नथी ते माणस देव करी न्यात विगेरे जमाने बे तेनी न्यात जमवी नहीं. वली ग्गाइ लुच्चाइनो वेपारज करे वे तो तेनी पण न्यात तरफ शिक्षा करवी. या रीत थाय तो न्यात सुखी थाय अ थवा या लोकमां वेपार रोजगार सारो चाले अने जगतमां बहु मानता थाने सुखी थाय अने तेना पुण्यथी परलोकमां पण सुखी थाय. विद्याभ्यास करी हुंशियार थइ वर्त्तणुक अन्यायनी सुधारे नहीं तो तेथी पण कोमनुं बहुमान थवानुं नथी. बहुमान श्रवानुं कारण अन्याय बोरुवो एज बे. ते म्होटा पुरुषे करी बताववो जोइए तथा देव व्य साधारण व्य ज्ञान व्य एवां व्य श्रावकने त्यां वधारे व्याज ऊपजतुं होय तो पण धीरखं नहीं, ए बाबत श्राद्धविधी तथा व्यशीतेरी विगेरे शास्त्रमां मना कर मां विस्तारे बताव्यो बे ते जोवुं जोइए. देवादिक झय जेणे खाधुं तेनी सात पेढी सूधी तेनो वंश सुखी थतो नथी माटे धीरवानो पायोज बंध करवो जोइए अने राखनारे व्याजे तो न लेवं पण घीनी टीपना देवा पैसा पण राखवा नहीं,
ने राखवाथी घणुंज नुकशान शास्त्रमां बताव्यं बे, माटे ए वातनों खूब लक्ष राखवाश्री सुखी थवानुं साधन बे, देरासर संबंधीना पैसामा कांड पण पोताना पैसानो जेल करवो नहीं तेथी श्री लोकने परलोकना सुखना जाजन थशे.
२ बीजुं जैन कोमना शेतीआनए सहानो वेपार करवा देवो न जोइए. सहाना वेपारथी माणसने घणां प्रकारनां नुकशान था एकतो प्रथम प्रालसु थाय वे कांइ पण वेपार ढुंरुवानी