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( २०१) मुक्त थाय ने तेमां पैसा दुपावी राखे . ए अन्याय के शुंडे वली कदापि कोइए न राख्या अने पाग पैसा पेंदा कर्या ने लाखो मख्या पण पेहेलाना देवामां जुज रकम देवी होय तो दे. वा वालाने आपे नहीं तो जगतमां जैन कोमने सुंदर गप शी रीते पमे ते विचार जोए; अने एवा पैसा राखी शासननी परतावना करे संघ जमा तेमां अन्यायना पैसा आवे तो नमनारनी बुद्धि केवी रोते सुधरे. साधारण माणस दाखलो ले के देवा वाला ते आवा धनवान थाय , शासनना यांनला जेवा कहेवाय , ते आपता नथी तो आपणे शी रीते आपीए? एवा विचार फेलावाथी लोकना मनमां एवं आव्युं जे पैसा हशे तो मान पामीशु. देवा वालाने बधा पैसा आपी दशं तो मान नहीं पामीये. या बुद्धि फेलाइ गइ ने तेथी सर्व कोश्ने देन थाय ते आपवानी बुद्धि थाय नहीं.आ बाबतमा संघनो अंकोश एवो जोइए वा नाती वालानो के जे देवादार थाय तो तमाम पैसा देवा वालाने अपाववा जोशए अने पडी तेने म्होटा वरा संघ जमामवानां खरच करवां देवां जोइए एवी चीज करवा तैयार अयो के न्याते नलामण करवी ते ला लीधी ने ते वखत नगा पैसा आप्या , ने बाकी, देवू ले ते पेटे न्यातना तथा संघना खरच जेटला पैसा आपी दो अने ते देवं पुरु थया पठी तमारी मरजी प्रमाणे खरचो. आवी अंकुश न्यात राखी शके तो जैननी बहु मानता श्रवामां बाकी रहे नहीं अने एवी गपथी श्रावकोने धीरतां को आंचको खाय नहीं. सर्वेथी शिरोमणि कोम थइ जाय पण हालमां तो श्रावको प्रथम देव च्यनाज पैसा खाइ जनार नपर एवी अंकुश राखी शकती नथी अने तेथी लोको पुखी थया विना रहेता नथी. केटलाएक गाममां एवी पण रीत के देवव्यर्नु दे, होय त्यां सुधी श्रावक तेहने त्यां न्यात जमवा जता